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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir संयमः उपदेश मालायां ॥२३४॥ तहा कुलिंगी अ । दुहओ चुक्का नवरं, जोवंति दरिद्दजियलोए ॥४६२ ॥ सब्बो न हिंसियव्वो, जह महिपालो तहा उदयपालो । | नय अभयदाणवइणा, जणोवमाणेण होयव्वं ॥ ४६३ ।। पाविज्जइ इह वसणं, जणेण तं छगलओ असत्तुत्ति । न य कोइ सोणिय जीवनमरणे हितं. बलिं, करेइ वग्घेण देवाणं ॥ ४६४ ॥ वच्चइ खणेण जीवो, पित्तानिलधाउसिंभखोभेहिं । उज्जमह मा विसीअह, तरतमजोगो इमो दुलहो ॥ ४६५ ॥ पंचिंदियत्तणं माणुसत्तणं आरिए जणे सुकुलं । साहुसमागम सुणणा, सद्दहणाऽरोग पधज्जा ।। ४६६ ॥आउं ला संविल्लतो, सिढिलंतो पंधणाई सम्बाई । देहदि मुयंतो, झायह कलणं बह जीवो ॥ ४६७ ।। इऽपि नथि जे सुट्ठ सुचरियं जहाला इमं बलं मज्झ । को नाम दढकारी, मरणते मंदपुण्णस्स ? ॥ ४६८ ॥ युग्मम् ॥ मूलविसअहिविसूईपाणीसत्थीग्गसंभमेहिं च । देहतरसंकमणं, करेह जीवो मुहत्तेण ॥ ४६९ ।। कत्तो चिंता सुचरियतवस्स गुणसुहियस्स साहस्स' । सोगइगमपडिहत्थो, जो अच्छइ नियमभरियभरो ॥ ४७० ।। साहति अ फुडविअर्ड, मासाहससउणसरिसया जीवा । न य कम्मभारगरुयत्तणेण तं आयरंति तहा ॥ ४७१ ॥ बग्घमुहम्मि अहिगओ, मंसं दंतंतराउ कड्डेइ । मा साहसति जंपइ, करेइ न य तं जहाभणियं ॥ ४७२ ।। परिअट्टिऊण गंथत्थवित्थरं निहसिऊण परमत्थं । तं तह करेह जह तं, न होइ सव्बंपि नडपढियं ॥ ४७३ ॥ पढइ नडो वेरग्गं, निम्विीज्जज्जा य बहुजणो जेण । पढिऊण तं तह सढो, जालेण जलं समोअरइ ॥ ४७४ ॥ कह कह करेमि कह मा करेमि कह कह कयं बहुकयं मे । जो हिययसंपसार, करेइ सो अइकरेइ हिय।।४७५||सिढिलो अणायरकओ, अवसवसकओ तहा कयावकओ। सयर्य पमत्तसी-18 लालस्स, संजमो केरिसो होज्जा ॥४७६॥चंय कालपक्खे, परिहाइ पए पए पमायपरो । तह उग्घरविघरनिरंगणो य णय इच्छिया ॥२३४॥ लहइ ।। ४७७ ॥ भीओविग्ग निलुको, पागडपच्छन्नदोससयकारी | अप्पच्चयं जणतो, जणस्स धी जीवियं जियइ ॥ ४७८ ॥ न" %81559 For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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