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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश तहिं दिवसा पक्खा, मासा वरिसावि संगणिज्जंति । जे मूल उत्तरगुणा, अक्खलिया ते गणिज्जति ॥ ४७९ ।। जो नवि दिणे अहिंसा मालायां दिणे संकलेइ के अज्ज अज्जिया मि गुणा ? | अगुणेसु अ नहु खलिओ, कह सो उ करिज्ज अप्पहिरं? ॥ ४८०॥ इय गणियं स्खलना दइय तुलिअं इय बहुआ दरािसयं नियमियं च । जइ तहविन पडिबुज्झइ, किं कीरइ ? नूण भवियब्वं ॥४८१॥ किमगंतु पुणो भवमोक्ष ॥२३५।। जेणं, संजमसेढो सिढिलीकया होई । सो तं चिअ पडिबज्जइ, दुक्खं पच्छा उ उज्जमई ।। ४८२ ॥ जइ सव्वं उबलद्धं, जइ अप्पा मागो ४ाभाविओ उवसमेणं । कायं वायं च मणं, उप्पहणं जह न देई ॥ ४८३ ॥ हत्थे पाए निखिवे, कार्य चालिज्ज तंपि कज्जर्ण ।मा अर्चा कुम्मो व्व सए अंगे, अंगोवंगाई गोविज्जा ॥४८४ । विकहं विणायभासं अंतरभासं अवक्कभासं च । जं जस्स अणिहमपुच्छिओ PIय भासं न भासिज्जा ।।४८५॥ अणवट्ठियं मणो जस्स, झायइ बहुयाई अट्टमट्टाई । तं चिंति च न लहइ, संचिणइ अ पावकम्माई ४॥ ४८६ ॥ जह जह सव्वलद्धं, जह जह सुचिरं तवोवणे बुच्छं । तह तह कम्मभरगुरू, संजमनिब्बाहिरो जाओ ॥ ४८७॥४ विज्जप्पो जह जह ओसहाई पिज्जेह वायहरणाई । तह तह से अहिययर, वारणाऊरिअं पुढें ॥ ४८८ ॥ दड्वजउमकज्जकर, भिन्न संखं न होइ पुण करणं । लोहं च तंबविद्धं, न एइ परिकम्मणं किंचि ॥ ४८९ ॥ को दाही उवएसं, चरणालसयाण दुधिअड्डाणं । इंदस्स देवलोगो, न कहिज्जइ जाणमाणस्स ॥ ४९०॥ दो चेव जिणवरेहि, जाइजरामरणविप्पमुकेहिं । लोगम्मि पहा भणिया, सुस्समण सुसावगो वावि ॥ ४९१ ॥ भावच्चणमुग्गविहारया य दबच्चणं तु जिणपूआ । भावच्चणाउ भट्ठो, हविज्ज दवच्चणुजुत्तो ॥ ४९२ ॥ जो पुण निरच्चणो च्चिअ, सरीरसुहकज्जमित्ततल्लिच्छो । तस्स नहि बोहिलाभो, न सुग्गई नेय परलोगो ॥२३५॥ | ।। ४९३ ॥ कंचणमणिसोवाणं, थंभसहस्सूसिअं सुवण्णतलं । जो करिज्ज जिणहरं, तओवि तवसंजमो अहिओ ।। ४९४ ।। निब्बीए For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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