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उपदेश मालायां
॥२३३॥
सुगइपहा, सोयरियसुओ जहा सुलसो ॥ ४४५ ॥ मूलग कुदंडगा दामगाणि उच्छूलपंटिआओ य । पिंडेइ अपरितंतो, चउप्पया संयमः नत्थि य पमूऽवि ॥ ४४६ ॥ तह वत्थपायदंडगउवगरणे जयणकज्जमुज्जुत्तो । जस्सऽढाए किलिस्सई, तं चिय मूढो नवि करेई जीवनमरणे | ॥ ४४७ ।। अरिहंता भगवंतो, अहिय व हियं व नचि इहं किंचि | वारंति कारवेंति य, चित्तण जणं बला हत्थे ।। ४४८ ॥ उवएस हितं.
पुण तं दिति जेण चरिएण कित्तिनिलयाणं | देवाणवि इंति पह, किमंग पुण मणुअमित्ताणं? ॥ ४४९ ।। वरमउडकिरीडधरो, |चिचइओ चवलकुंडलाहरणो । सको हिओवएसा, एरावणवाहणो जाओ॥ ४५० ।। रयणुज्जलाइँ जाई, बत्तीसविमाणसयसहस्साई।
वज्जहरेण वराइँ, हिओवएसेण लद्धाई ॥४५१॥ सुरवइसम विभूई, जं पत्तो भरहचकवडीऽवि । माणुसलोगस्स पहू, तं जाण हिओवएसेण ॥ ४५२ ।। लघृण तं सुइसुहं, जिणवयणुवएसममयबिंदुसमं । अप्पहियं कायव्वं, अहिएसु मणं न दायव्यं ।। ४५३ ॥ हियमप्पणो करितो, कस्स न होइ गरुओ गुरू गणो !। अहियं समायरंतो, कस्स न विप्पच्चओ होइ ? ॥४५४॥ जो नियमसीलतवसंजमेहिं जुत्तो करेइ अप्पहियं । सो देवयं व पुज्जो, सीसे सिद्धत्थओब्ध जणे ।। ४५५ ।। सब्वो गुणेहिं गण्णो, गुणाहिअस्स | | जह लोगवीरस्स । संभंतमउडविडवो, सहस्सनयणो सययमेइ ।। ४५६ ।। चोरिक्कवंचणाकूडकवडपरदारदारुणमइस्स । तस्स च्चिय पूत अहियं, पुणोऽवि वेरं जणो वहइ ।। ४५७ ।। जइ ता तणकंचणलट्टरयणसरिसोवमो जणो जाओ । तइया नणु वुच्छिन्नो, अहि-14 | लासो दब्बहरणम्मि ॥ ४५८ ॥ आजीवगगणनेया, रज्जसिरिं पयहिऊण य जमाली । हियमप्पणो करितो, नय वयणिज्जे इह
॥२३३॥ पडतो ।। ४५९ ॥ इंदियकसायगारवमएहि सययं किल्लिट्ठपरिणामो । कम्मघणमहाजालं, अणुसमयं बंधई जीवो ॥ ४६० ॥ परप| रिवायविसाला, अणेगकंदप्पविसयभोगेहिं । संसारत्था जीवा, अरइविणोअं करतेवं ॥ ४६१ ॥ आरंभपायनिरया, लोइअरिसिणो ४
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