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उपदेश मालायां
साधुत्वं, वृद्धाबासः,
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गीताथे:
॥२३२॥
Bामुणेयब्बो ॥ ४२८ ।। छज्जीवनिकायमहव्वयाण परिपालणाइ जइधम्मो । जइ पुण ताई न रक्खइ, भणाहि को नाम सो धम्मो? |॥ ४२९ ॥ छज्जीवनिकायदयाविवज्जिओ नेव दिक्खिओ न गिही । जइधम्माओ चुक्को, चुक्कइ गिहिदाणधम्माओ ॥ ४३० ॥ सब्बाओगे जह कोई, अमच्चो नरवइस्स चित्तूणं । आणाहरणे पावइ, वहबंधण दब्बहरण च ॥४३१॥ तह छकायमहब्बयसव्वनिवितीउ गिहिऊण जई । एगमवि विराहतो, अमच्चरणो हणइ बोहिं ।। ४३२ ॥ तो हयबोही य पच्छा, कयावराहाणुसरिसमियममियं । पुणवि भवोअहिपडिओ, भमइ जरामरणदुग्गम्मि ॥ ४३३ ॥ जइयाऽणेणं चत्तं, अप्पणयं नाणदंसणचरितं । तइया तस्स परेसु, अणुकंपा नत्थि जीवेसु ।। ४३४ ॥ छकायरिऊण अस्संजयाण लिंगावसेसमित्ताणं । बहुअस्संजमपवहो, खारो मइलेइ सु?अरं ॥ ४३५ ।। किं लिंगमिडरीधारणेण कज्जम्मि अट्ठिए ठाणे । राया न होइ सयमेव, धारय चामराडोवे ।। ४३६ ॥ जो सुत्तत्थविणिच्छियकयागमो मूलउत्तरगुणोहं । उन्बहइ सयाऽखलिओ, सो लिक्खइ साहुलिक्खम्मि ॥ ४३७ ॥ बहुदोससकिलिट्ठो, नवरं मइलेइ चंचलसहावो । सुट्ठवि वायामितो, कायं न करेइ किंचि गुणं ॥४३८॥ केसिंचि वरं मरणं, जीवियमसिमुभयमनसिं । ददुरदेविच्छाए, अहियं केसिंचि उभयंपि।४३९। केसिंचि य परलोगो, अमेसि इत्थ होइ इहलोगो । कस्सवि दुण्णिवि लोगा, दोऽवि हया कस्सई लोगा ।। ४४० ॥ छज्जीवकायविरओ, कायकिलेसेहिं सुटु गुरुएहिं । नहु तस्स इमो लोगो, हवइऽस्सेगो परो लोगो ॥ ४४१ ॥ नरयनिरुद्धमईणं, दंडियमाईग जीवियं सेयं । बहुवायम्मिवि देहे, विसुज्झमाणस्स वर मरणं ॥४४२॥ तवनियमसुट्टियाणं, कल्लाणं जीविअंपि मरणंपि । जीवंतऽज्जति गुणा, मयाऽवि पुण सुग्गई जति ॥४४३।। अहिय मरण अहिअंच जीवियं पावकम्मकारीणं । तमसम्मि पडति मया, बेरं वटुंति जीवंता ।४४४। अवि इच्छंति अ मरण, नय परपीडं करति मणसावि । जे सुबिइय
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॥२३२॥
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