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मा
उपदेश मालायां
साधुत्वं, वृद्धावासः,
धमे
॥२३॥
गीतार्थः
काऊणवि जो न याणेइ ॥ ४१२ ॥ देसियराइयसोहिय, वयाइयारे य जो न याणेइ । अविसुद्धस्स न वड्डइ, गुणसेढी तत्तिया ठाइ ॥ ४१३ ॥ युग्मम् ॥ अप्पागमो किलिस्सइ, जइवि करेइ अइदुक्करं तु तवं । सुंदरबुद्धीइ कयं, बहुयपि न सुंदरं होई ॥ ४१४ ॥
अपरिच्छियसुयनिहसस्स केवलमभिन्नसुत्तचारिस्स । सव्वुज्जमणऽवि कयं, अन्नाणतवे बहुं पडई ॥ ४१५ ॥ जह दाइयम्मिऽवि & पहे, तस्स विसेसे पहस्सध्याणतो । पहिओ किलिस्सइ च्चिय, तह लिंगायारसुअमित्तो ।। ४१६ ।। कप्पाकप्पं एसणमणेसणं चरण
करणसेहविहिं । पायच्छित्तविहिंऽपि य, दयाइगुणेसु असमग्गं ॥ ४१७ ॥ पचावणविहिमुडावणं च अज्जाविहिं निरवसेसं। उस्सग्गववायविहिं, अयाणमाणो कहं जयउ ? ॥ ४१८ ॥ सीसायरियकमेण य, जण गहियाइँ सिप्पसत्थाई । नजंति बहुविहाई न चक्खुमित्ताणुसरियाई ॥ ४१९ ॥ जह उज्जमिउं जाणइ, नाणी तब संजमे उवायविऊ । तह चक्खुमित्तदरिसणसामायारी न याणति ॥ ४२० ।। सिप्पाणि य सत्थाणि य, जाणतोऽविनय जुजइ जो ऊ । तेसि फलं न भुंजइ, इअ अजयंतो जई नाणी ॥ ४२१ ।। गारवतियपडिबद्धा, संजमकरणुज्जमम्मि सीअंता । निग्गंतूण गणाओ (घराओ) हिंडति पमायरण्णम्मि ॥ ४२२ ॥ नाणाहिओ वरतरं, हीणोऽविहु पवयणं पभावंतो । नय दुकरं करंतो, सुठ्ठवि अप्पागमो पुरिसो ॥ ४२३ ॥नाणाहियस्स नाणं, पुज्जइ नाणा पवत्तए चरणं । जस्स पुण दुण्ह इकपि, नस्थि तस पुज्जए काई ? ॥४२४|| नाणं चरितहीणं, लिंगग्गहणं च दसणविहीणं । संजमहीणं च तवं, जो चरइ निरन्थयं तस्स ।। ४२५ ।। जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी नहु चंदणस्स । एवं खु नाणी चरणेण हीणो, नाणस्स भागी नहु सुग्गईए ॥ ४२६ ॥ संपागडपडिसेवी, काएसु वएसु जो न उज्जमई । पवयणपाडणपरमो, सम्मत्तं कोमलं तस्स ॥ ४२७ ॥ चरणकरणपरिहीणो, जइवि तवं चरइ सु? अइगुरु । सो तिल्लं व किणंतो, कंसियबुद्दो
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॥२३॥
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