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साधुत्वं, वृद्धवावासः,
धर्म,
गीतार्थः
उपदेश १॥ ३९५॥ चरणइयारो दुविहो, मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य । मूलगुणे छट्ठाणा, पढमो पुण नवविहो तत्थ ॥ ३९६ ॥ सेसुक्कोसो मालायां माझम जहन्नओ वा भवे चउद्धा उ । उत्तरगुणऽण गविहो, दंसणनाणेमु अट्ठऽट्ठ ॥ ३९७ ॥ जं जयइ अगीयत्थो, जं च अगीयत्थ
निस्सिओ जयइ । वट्टावेइ य गच्छं, अणंतसंसारिओ होइ ॥३९८|| कह उ ? जयंतो साह, बट्टावई य जो उ गच्छं तु । संजमजुत्तो ॥२३॥ | होउं, अणंतसंसारिओ होइ? ॥ ३९९ ॥ दवं खित्तं कालं, भावं पुरिस पडिसेवणाओ य । नवि जाणइ अग्गीओ, उस्सग्गववाइयं
| चेव ।। ४००। जहठियदब्ध न याणइ, सच्चित्साचित्तमीसियं चेव । कप्पाकप्पं च तहा, जुग्ग वा जस्स जे होई ॥ ४०१ ।। जहठियखित्त न जाणइ, अद्धाणे जणवए अजं भणियं । कालंपि अनवि जाणइ, सुभिक्खदुभिक्ख जं कप्पं ॥ ४०२ ।। भावे हट्ठगिलाणं, नवि याणइ गाढऽगाढकप्पं च । सहुअसहुरिसरूवं, वत्थुमवत्थु च नवि जाणे ॥ ४०३ ॥ पडिसवणा चउद्धा, आउट्टिपमायदप्पकप्पेसु । नवि जाणइ अग्गीओ, पच्छित्तं चेव जंतस्थ ॥ ४०४ ।। जह नाम कोइ पुरिसो, नयणविहूणो अदेसकुलो य । कंताराडविभीमे, मग्गपणहस्स सत्थस्स ॥ ४०५ ॥ इच्छइ य देसियत्तं, किं सो उ समत्थ देसियत्तस्स। दुग्गाई अयाणतो, नयण
विहूणो कहं देसे? ॥ ४०६॥ युग्मम् ।। एवमगीयत्थोऽविहु, जिणवयणपईवचक्खुपरिहीणो ! दब्बाइँ अयाणंता, उस्सग्गववाइयं वाचे ॥४०७।। कह सो जयउ अगीओ? कह वा कुणऊ अगीयनिस्साए ?। कह वा करे उ गच्छं? सबालवुड्डाउलं सो उ ॥४०८॥
मुत्ते य इमं भणियं, अप्पच्छित्ते य देइ पच्छित्तं । पच्छित्ते अइमत्तं, आसायण तस्स महई उ ॥४०९ आसायण मिच्छत्तं, आसायणवज्जणा उ सम्मत्तं । आसायणानिमित्तं, कुव्वइ दीहं च संसारं ॥ ४१० ॥ एए दोसा जम्हा. अगीय जयंतस्सऽगीयनिस्साए । वडावय गच्छस्स य, जो अगणं देयगीयस्स ।। ४११ ।। अबहुस्सुओ तबस्सी, विहरिउकामो अजाणिऊण पहं । अवराहपयसयाई,
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HDarikARI
॥२३॥
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