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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र र्षिकृते | पञ्चसंग्रहे | कर्मप्रकृतो ॥३१३॥ | ॥ ५०२ ॥ पल्लाऽसंखियमृला गन्तुं दुगुणा हवन्ति अद्धा य । नाणा गुणहाणीणं असंखगुणमेगगुणविवर ।। ५०३ ॥ चउठाणाई-है। प्रकृति| जवमझ हेट्ठउवरिं सुभाण ठितिबन्धा । सखेज्जगुणा ठिइठाणगाई असुभाण मीसा य ॥ ५०४ ॥ इति बन्धनकरणम् ॥ संक्रमः ___अथ संक्रमकरणम् - बझंतियासु इयरा ताओवि य संकमंति अनोऽनं । जा संतयाए चिट्ठहि बंधाभावेवि दिट्ठीओ | ॥ ५०५ ॥ संकमइ जासु दलियं ताओ उ पडिग्गहा समक्खाया । जा संकमावलिय करणासझं भवे दलिय ॥ ५०६ ॥ नियनिय दिढेि न केइ दुइय तइज्जा न दंसणतिगंपि । मीसम्मिन सम्मत्तं दसकसाया न अभोमं ॥ ५०७॥ संकामति न आउं | उवसंतं तहय मूलपगइओ । पगइट्ठाणविभेया संकमणपडिग्गहा दुविहा ॥ ५०८॥ खयउवसमदिट्ठीणं सेढीए न चरिमलोभसंक| मणं । खवियदृगस्स इयराइ जंकमा होइ पंचण्हं ॥ ५० ॥ मिच्छे खविए मीसस्स नत्थि उभए वि नस्थि सम्मस्स । उबलिएK | दोसुं पडिगहया नस्थि मिच्छस्स ।। ५१० ॥ दुसु तिसु आपलियासुं समयविहीणासु आइमठिईए । सेसासु पुंसंजलणयाणं न भवे | पडिग्गहया ॥ ५११ ॥ धुवसंतीणं चउहेह संकमो मिच्छणीयवेयणीए । साईअधुवो बंधोच्च होइ तह अधुवसंतीणं ॥५१२ ॥ साअणजसदुबिहकसायसेसदोदसणाणजइपुब्बा । संकामगंत कमसो समुच्चाणं पढमदुइया ।। ५१३ ।। चउहा पडिग्गहरी धुवबंधीर्ण विहाय मिच्छत्तं । मिच्छाऽधुवबंधीणं साई अधुवा पडिग्गहया ।। ५१४ ॥ संतढाणसमाई संकमठाणाई दोण्णि बीयस्स | बंधसमा पडिगया अट्टहिया दो वि मोहस्स ॥ ५१५ ।। पण्णरस सोलसत्तर अडचउवीसा य संकम नत्थि । अदृद्वालस सोलस बीसा य पडिग्गहे नत्थि ।। ५१६ ॥ संकमणपडिग्गहया पढमतइज्जङमाण चउभेया । इगवीसो पडिगहगो पणवीसो संकमा मोहे ॥३१३॥ | ॥ ५१७॥ दंसणवरणे नवगो संकमणपडिग्गही भवे एवं । साई अधुवा सेसा संकमणपडिग्गहट्ठाणा ॥ ५१८ ॥ नवछक्कचउक्केसुं| For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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