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उपदेश मालायां
विपाका, आत्मदमः, प्रमादो, भवः,
॥२१७॥
कोडिगुणो वा, हुज्ज विवागो बहुतरो वा ॥ १७८ ॥ केइत्थ करतालंबणं इमं तिहुयणस्स अच्छेरं । जह नियमा खवियंगी, मरुदेवी | भगवई सिद्धा ।। १७९ ।। किंपि कहिंपि कयाई, एगे लद्धीहि केहिऽवि निभेहिं । पत्तेअबुद्धलाभा, हवंति अच्छेरयम्भूया ॥ १८० ॥ निहिसंपत्तमहन्नो, पत्थितो जह जणो निरुत्तप्पो । इह नासह तह पत्तेअबुद्धलद्धि(च्छि)पडिच्छतो ।। १८१ ॥ सोऊण गई सुकुमालियाए तह ससगभसगभइणीए । ताव न वीसासयब्वं, सेयट्ठी धम्मिओ जाव ॥ १८२ ॥ खरकरहतुरयवसहा, मत्तगईदावि नाम दम्मति । इको नवरि न दम्मइ, निरंकुसो अप्पणो अप्पा ॥ १८३ ॥ वरं मे अप्पा दंतो, संजमेण तवेण य । माऽहं परेहिं दमतो, बंधणेहिं वहेहि अ॥ १८४ ॥ अप्पा चव दमेयव्यो, अप्पा हु खलु दुद्दमो । अप्पा दंतो सुही होइ, अस्सि लोए परत्थ य॥१८५।। निच्चं दोससहगओ, जीवो अविरहियमसुहपरिणामो । नवरं दिने पसरे, तो देइ पमायमयरेसु ॥ १८६ ॥ अच्चिय वंदिय पूइअ, सकारिय पणमिओ महग्घविओ । तं तह करेइ जीवो, पाडेइ जहप्पणो ठाण ॥१८७॥ सीलब्बयाई जो बहुफलाइँ हंतूण सुक्खमहिलसइ । धिइदुबलो तवस्सी, कोडीए कागिणिं किणई ॥ १८८ ।। जीवो जहामणसियं, हियइच्छियपत्थिरहिं सुक्खेहिं । तोसेऊण न तीरई, जावज्जीवेण सव्वेण ॥१८९॥ सुमिणंतराणुभूयं, सुक्खं समइच्छियं जहा नत्थि । एवमिमपि अईयं, सुक्खं सुमिणो| वमं होई ॥ १९० ॥ पुरनिद्धमणे जक्खो, महुरामंगू तहेव सुयनिहसो । बोहेई सुविहियजणं, विसरइ बहुं च हियएण ।। १९१ ।। निग्गंतूण घराओ, न कओ धम्मो मए जिणक्खाओ । इड्डिरससायगुरुयत्तणेण न य चेइओ अप्पा ॥ १९२ ॥ ओसन्नविहारेणं, | हा जह झीणम्मि आउए सब्धे । किं काहामि अहलो ? संपइ सोयामि अप्पाणं ॥१९३॥ हा जीव ! पाव भमिहिसि, जाईजोणीसयाई बहुयाई । भवसयसहस्सदुलहपि जिगमयं एरिसं लधु ॥ १९४ ॥ पावो पमायवसओ, जीवो संसारकज्जमुज्जुत्तो । दुक्खेहि
CREAM-StsACREAM
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15॥२१७॥
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