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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मप्रकृती ॥२७५॥ रकम करणेहिं तीहिं सहिया नंतरकरणं उवसमो वा ॥ ३४३ ॥ दसणमोहेवि तहा कयकरणद्धाइ पच्छिमे होइ । सर्वोपजिणकालगो मणुस्सो पट्ठवगो अट्ठवासुप्पि ॥ ३४४ ।। अहवा दंसणमोहं पुव्वं उवसामइत्तु सामने । पढमठिईमावालयं करेइ दोहंका शमना अणुदियाणं ॥ ३४५ ॥ अद्धापरिवित्तीओ पमत्त इयरे सहस्ससो किच्चा । करणााण तिन्नि कुणए तइयविसेसे इमे सुणसु ॥३४६॥ अंतोकोडाकोडी संतं अनियट्टिणो य उदहीणं । बंधो अंतोकोडी पुवकमा हाणि अप्पबहू ॥ ३४७ ॥ ठिइकंडगमुक्कस्संपि तस्स पल्लस्सऽसंखतमभागो। ठिइबंधबहुसहस्से सेक्केक्कं जं भणिस्सामो ॥३४८।। पल्लादिवबिपल्लाणि जाच पल्लस्स संखगुणहाणी । मोहस्स जाव पल्लं संखज्जइभागहाऽमोहा ॥३४९|| तो नवरमसंखगुणा एकपहारेण तीसगाणमहो। मोहे वीसग हेडा य तीसगाणुप्पि तइयं च ॥ ३५० ॥ तो तीसगाणमुप्पि च वीसगाई असंखगुणणाए । तइयं च वीसगाहि य विसेसमाहियं कमणेति ॥ ३५१ ।। | अहुदीरणा असंखेज्जसमयबद्धाण देसघाइ स्थ । दाणंतराय मणपज्जवं च तो ओहिदुगलाभो ॥३५२॥ सुयभोगाचक्खूओ चक्खू य | ततो मई सपरिभोगा । विरियं च असेढिगया बंधंति उ सबघाईणि ।। ३५३ ।। संजमघाईणतरमेत्थ उ पढमट्टिई य अन्नयरे । | संजलणावेयाणं वेइज्जंतीण कालसमा ॥ ३५४ ।। झमयकयंतरे आलिगाण छहं उदीरणाभिनवे । मोहे एक्कट्ठाणे बंधुदया | संखवासाणि ।। ३५५ ॥ संखगुणहाणिबंधो एत्तो सेसाण संखगुणहाणी। पढमसमए नपुंसं असंखगुणणाइ जावंतो ।। ३५६ ।। | एवित्थी संखतमे गयम्मि घाईण संखवासाणि । संखगुणहाणि एत्तो देसावरणाणुदगराई ॥३५७॥ ता सत्तण्हं एवं संखतमे संखवा| सितो दोण्हं । बिइयो पुण ठिइबंधो सव्वेसि संखवासाणि ।। ३५८ ॥ छस्सुवसमिज्जमाणे सेक्का उदयट्टिई पुरिससेसा । समऊणा ॥२७५७ वलिगद्गे बद्धावि य तावदद्धाए ॥ ३५९ ॥ तिविहमवेओ कोहं कमेण सेसेवि तिविहतिविहेवि । पुरिससमा संजलणा पढमठिई है। For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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