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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandit कर्मप्रकृती 18| स्सेहिं पूरए एक्कं । ठिइकंड सहस्सेहिं तेसि वीयं समाणेहिं ।। ३२६ ।। गुणसढी निक्खेवो समये समये असंखगुणणाए । अद्धादु | सर्वोपगाइरित्तो सेसे सेसे य निक्खेदो ॥ ३२७ ॥ अनियट्टिम्मिवि एवं तुल्ले काले समा तओ नामं । संखिज्जइमे सेसे भिन्नमुहुत्तं अहो | शमना ॥२७४|| | मुच्चा ।। ३२८ ॥ किंचूणमुहुत्तसमं ठिइबंधद्धाइ अंतरं किच्चा । आवलिदुगेकसेसे आगाल उदीरणा समिया ॥ ३२९ ।। मिच्छत्तुदए खीणे लहए सम्मत्तमोवसमियं सो । लभेण जस्स लब्भइ आयहियमलद्धपुव्वं जं ॥ ३३० ॥ तं कालं बीयठिई तिहाणुभागेण देसघाइ स्थ । सम्मत्तं सम्मिस्स मिच्छत्तं सव्वघाईओ ॥ ३३१ ।। पढमे समए थोवो सम्मत्ते मीसए असंखगुणो। अणुसमयमवि य कमसो भिन्नमुहुत्ता हि विज्झाओ ।। ३३२ ॥ ठिइरसघाओ गुणसेढीविय तावपि आउवज्जाणं । पढमठिइए एगदुगावलिसेसम्मि | | मिच्छत्ते ॥ ३३३ ॥ उवसंतद्धा अंते विहिणा ओकड्डियस्स दलियस्स । अज्झवसाणणुरूवस्सुदओ तिसु एक्कयरयस्स ॥ ३३४ ॥ | सम्मत्तपढमलंभो सब्वोवसमा तहा विगिट्ठो य । छालिगसेसाइ परं आसाणं कोइ गच्छज्जा ॥३३५।। सम्मद्दिट्ठी जीवो उवइ8 पवयणं तु सद्दहइ । सद्दहइ असम्भावं अजाणमाणो गुरुनियोगा ॥३३६॥ मिच्छद्दिट्ठी नियमा उवइष्टुं पवयणं न सहइ । सद्दहइ असम्भावं | उवइ8 वा अणुबइ8 ॥३३७|| सम्मामिच्छद्दिट्ठी सागारे वा तहा अणागारे । अह वैजणोग्गहम्मि य सागारे होइ नायब्बो ।। ३३८॥ | वेयगसम्मद्दिट्ठी चरित्तमोहुवसमाए चिट्ठतो । अजओ देसजई वा विरतो व विसोहिअद्धाए ॥३३९।। अन्नाणाणब्भुवगमजयणाहजओ | अवज्जविरईए । एगव्बयाई चरिमो अणुमइमित्तोत्ति देसजई ॥ ३४०॥ अणुमइविरओ य जई दोण्हवि करणााणि दोण्णि न उ81 तइयं । पच्छा गुणसढी सिं तावइया आलिगा उप्पि ॥ ३४१ ॥ परिणामपच्चया उ णाभोगगया गया अकरणा उ ॥२७४।। 21 गुणसेढी सिं निच्चं परिणामा हाणिवुडिजुया ॥ ३४२ ॥ चउगइया पज्जता तिमिवि संयोयणा विजोयंति ।। RECECASTEROCALSCREEN ACCURACCA For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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