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श्रीचन्द्र-1 | गाअंते ॥ ६१८ ॥ तेवढे उदहिसयं गेविज्जाणुत्तरे अबन्धित्ता । तिरिदुग उज्जोयाई अहापवत्तस्स अन्तम्मि ॥ ६१९ । इगिवि-18 उद्वत्तनार्षिकृते | गलायवथावरचउक्कमबन्धिऊण पणसीयं । अयरसयं छट्ठीए बावीसयरे जहा पुव्वं ।। ६२० ।। दुसराइतिनिनीयासुभखगइसंघयणसं
पवत्तने पञ्चसंग्रहे
| ठिअपुमाणं । सम्मा जोगाणं सोलसह सरिसस्थिवेएणं ॥६२१ ॥ समयाहिआवलीए आऊण जहन्नजोगबद्धाणं । उक्कोसाऊअंते कर्मप्रकृतौल
| नरतिरिया उरलसत्तस्स ॥ ६२२ ।। पुंसंजलणतिगाणं जहन्नजोगिस्स खवगसेढोए । सगचरिमसमयबद्धं जं छुमइ सगतिमे समए ॥३२०॥
॥ ६२३ ।। संक्रमकरणं समाप्तम् ॥
अथ उद्वर्तनाऽपवर्त्तनाकरणम् - उदयावलिबज्झाणं ठिईण उबट्टणा उ ठितिविसया । सोकोसअबाहाओ जावावलि होइऽइत्थवणा ॥ ६२४ ॥ इच्छियठितिठाणाओ आवलियं लंघिऊण तद्दलियं । सम्धेसु विनिक्खिप्पइ ठितिठाणेसुं उबरिमेसु | M॥ ६२५ ।। आवलिअसंखभागासु जाव कम्मद्वितित्ति निक्खेवो । समउत्तरावलीए साबाहाए भवे ऊणो।। ६२६ ॥ अब्बाहोवरि-1 | ठाणगदलं पडुच्चेह परमनिक्खेवो । चरिमुन्वट्टणठाणं पडच्च इह जायइ जहण्णो ।। ६२७ ॥ उक्कोसगठितिवन्धे बन्धावलिया अबाहमेत्तं च । निक्खेवं च जहन्नं मोत्तुं उबट्टए सेसं ॥ ६२८ ॥ निवाघाए एवं वाघाओ संतकम्महिगवन्धो । आवलिअसंखभागा जावावलि तत्थाइत्थवणा ।। ६२९ । आवलिदोसंखंसा जति वड्इ अहिणवो उ ठितिबन्धो । उव्वद्दति तो चरिमा एवं जावलिय अइत्थवणा ।। ६३० ॥ अइत्थावणालियाए पुण्णाए वड्डइत्ति निक्खेवो । ठितिउबट्टणमेवं एत्तो ओव्वट्टणं वोच्छं ४ ॥३२॥ | ॥ ६३१ ॥ ओवÉतो उ ठिीत उदयावलिबाहिरा ठिईठाणा । निक्खिवति से तिभाग समयहिगे लंघिउं सेस ॥ ६३२ ॥ उदयावलि उवरित्था एमेवोवट्टए ठितिढाणा | जावावलीतिभागो समयहिगो सेसठितिण तु ॥ ६३३ ।। इच्छोवद्गृणठिइठाणगाओ उल्लंघिऊण
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