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मानं २ प्राभृतं
॥३४७॥
श्रीज्योति- छप्पण सगसट्ठिभागा य॥४६ ॥ एकारस य सहस्सा पंचव सया हवंति एकारा । अभिवहिए मुहुत्ता वाले अट्ठारस य भागा। करंडके R॥ ४७ ।। एए पमाणवासा पंचवि उववणिया जहुद्दिट्ठा । एत्तो जुगवासाणि य वोच्छामि अहाणुपुवीए ॥४८॥ चंदो चंदो
अभिवडिओ यचंदमभिवडिओ चेव । पंचहिं सहियं जुगमिणं दिदं तेलोकदंसीहिं ।। ४९ ॥ पढमबिइया उ चंदा तइयं अभिवड्डिय. विजाणाहि । चंद चेव चउत्थं पंचममभिवाड्डियं जाण ॥ ५० ॥ चंदमभिवड्डियाणं वासाणं पुव्ववनियाणं च । तिविहंपि तं पमाणं जुगंमि सव्वं निरवसेसं ॥ ५१ ॥ आदी जुगस्स संवच्छरोउ मासस्स अद्धमासा उ । दिवसा भरहेरवए राई य विदेहवासेसु ॥ ५२ ॥ दिवसाइ अहोरत्ता बहुलाईयाणि होति पव्वाणि । अभिई नक्खत्ताई रुद्दो आई मुहुत्ताणं ॥ ५३॥ सावणबडुलपडिवए | बालवकरणे अभीइनक्खत्ते । सब्बत्थ पढमसमये जुगस्स आई वियाणाहि ॥ ५५ ॥ अट्ठारस सहिसया तिहीण नियमा जुगमि |
नायव्वा । तत्थेव अहोरत्ता तसिा अट्ठारस सया उ॥ ५६ ॥ तत्थ पडिमिज्जमाणे पंचहिं माणेहिं पुव्वगणिएहिं । मासेहिं विभ& जित्ता जइ मासा होति ते वोच्छं ।। ५७ ।। आइच्चेण उ सट्ठी मासा उउणो उ होति एगट्ठी। चंदण य बावड़ी सत्तद्वी होति ।
नक्खत्त ।। ५८ ।। सत्तावन मासा सत्त य राईदियाई अभिवड्डे । एक्कारस य मुहुत्ता बिसट्ठिभागा य तेवीसं ॥ ५९ ॥ सव्वे कालविसेसा आउपमाणा ठिई य कम्माण । सव्वे समाविभागा सूरपमाणेण नायव्वा ॥ ६० ॥जं किर सूरेण जुगं अणूणमहिगाणि पंच वासाणि । ता किर जुगेण सव्वं गणंति अद्धाविसेसं तु ॥६१ ॥ वाससयसहस्साई चुलसीइगुणाई होज्ज पव्वंगं । | पुव्वंगसयसहस्सा चुलसीइगुणं हवइ पुव्वं ॥ ६२ ॥ पुवस्स उ परिमाणं सयरी खलु होंति सबसहस्साई । छप्पणं च सहस्सा ला बोद्धव्वा वासकोडीणं । ६३ ।। पुवाण सयसहस्सं [पुव्व ] चुलसीइगुणं भवे लयंगमिह [ हमेगं] | तेसिपि सयसहस्सं चुलसी
CANCE
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