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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पनाशक अगुणत्ता इइ ओ दिलुतो पुण सुवणं व ॥ ६७५ ॥ विसघाइरसायणमंगलस्थविणए पयाहिणावते । गरुए अडझऽकुत्थे अहाल मूलम् IM सुवण्णे गुणा होंति ॥ ६७६ ॥ इय मोहविसं घायइ सिवोवएसा रसायणं होति । गुणओ य मंगलत्थं कुणति विणीओ य जोग्गो- शीलाग त्ति ।। ६७७ ॥ मग्गणुसारिपयाहिण गंभीरो गुरुयओ तहा होइ । कोहग्गिणा अडज्झो ऽकुच्छो सइ सीलभावेण।। ६७८ ॥ एवं दिद्रुतगुणा सज्झमिवि एत्थ होंति णायब्धा । ण हि साहम्माभावे पायं जं होइ दिटुंतो ॥ ६७९ ॥ चउकारणपरिसुद्धं कसच्छेयतावतालणाए य । जं तं विसघातिरसायणादिगुणसंजुयं होइ ॥ ६८० ॥ इयरम्मि कसाईया विसिट्ठलेसा तहेगसारत्तं । अवगारिणि अणुकंपा वसणे अइणिच्चलं चित्तं ॥ ६८१ ॥ तं कसिणगुणोवेयं होइ सुवणं ण सेसयं जुत्ती। णवि णाम रूवमेत्तेण एवमगुणो भवति | साहू ॥ ६८२ ।। जुत्तीसुवण्णगं पुण सुवण्णवणं तु जदिवि कीरेंज्जा। ण हु होति तं सुवणं सेसेहि गुणेहऽसंतेहिं ।। ६८३ ॥ जे इह 18|| सुत्ते भणिया साहुगुणा तेहिं होइ सो साहू । वण्णेणं जच्चसुवण्णग व संते गुणणिहिम्मि ।। ६८४ ।। जो साहू गुणरहिओ भिक्खं हिं| डेति ण होति सो साहू । वण्णणं जुत्तिमुवण्णगवसंते गुणणिहिम्मि ॥ ६८५ ॥ उदिट्टकडं भुंजति छक्कायपमहणो घरं कुणति । पच्चक्खं च जलगते जो पियह कह णु सो साह? ।। ६८६ ।। अन्ने उ कसादीया किल एते एत्थ होंति णायव्वा । एताहिं परिक्खा-1 द्र हिं 'साहुपरिक्खेह कायव्वा ।। ६८७ ॥ तम्हा जे इह सुत्ते सादुगुणा तेहि होइ सो साहू । अचंतसुपरिसुद्धेहिं मोक्ख-18 है सिद्धित्ति काऊणं ॥ ६८८ ॥ अलमेत्थ पसंगेण सीलंगाई हवंति एमेव । भावसमणाण सम्मं अखंडचारित्तजुत्ताणं ।। ६८९ ॥ इयर्स कसलंगजुया खलु दुक्खंतकरा जिणेहिं पण्णता । भावपहाणा साहू ण तु अण्णे दवलिंगधरा ॥ ६९० ॥ संपुण्णावि हि किरिया ॥ ४२ ॥ भावेण विणा ण होति किरियत्ति । णियफलविगलत्तणो गेविन्जुववायणाएणं ॥ ६९१ ॥ आणोहेणाणता मुक्का गेवेजगेसु उ | SCAMECORROS For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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