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पञ्चाशक
| सरीरा । ण य तत्थासंपुण्णाएँ साहुकिरियाएँ उववाओ॥ ६९२ ॥ ता पंतसोवि पत्ता एसा ण य (उ) दसणंपि सिद्धति । 15 मूलम्.
एवमसग्गहजुत्ता एसा ण बुहाण इट्ठति ।। ६९३ ।। इय णियबुद्धि' इमं आलोएऊण एत्थ जइयव्वं । अचंतभावसारं भवविरहत्थं लाआलोचना
महजणेणं ।। ६९४ ॥ इइ सीलंगपंचासयं १४ ॥ ।। ४३ ।।
॥ अथ पञ्चदशमालोचनापञ्चाशकम ॥ १५॥ नमिऊण तिलोगगुरु वीरं सम्म समासओ वोच्छ । आलोयणाविहाणं जतीण सुत्ताणुसारेणं ।। ६९५ ॥ आलोयणं अकिच्चे | अभिविहिणा दंसणंति लिंगहिं । वइमादिएहिं सम्मं गुरुणो आलोयणा णेया ।। ६९६ ॥ आसेविते वकिच्चे णाभोगादीहिं होति संवेगा । अणुतावो तत्तो खलु एसा सफला मुणेयव्वा ॥ ६९७ ॥ जह संकिलेसओ इह बंधो वोदाणओ तहा विगमो । तं पुण इमीऍ 3ाणियमा विहिणा सइ सुप्पउत्ताए ।। ६९८ ॥ इहरा विवज्जओवि हु कुवेज्जकिरियादिणायतो णेओ । अवि होज्ज तत्थ सिद्धी
आणाभंगा न उन एत्थ ।। ६९९ ॥ तित्थगराणं आणा सम्मं विहिणा उ होइ कायव्वा । तस्मण्णहा उ करणे मोहादतिसंकिलेसो|त्ति ॥ ७०० ॥ बंधो य संकिलेसा ततो ण सोवेति तिब्बतरगाओ । इसि मलिणं ण वत्थं सुज्झइ नीलीरसादाहिं ॥ ७०१ ॥ एत्थं पुण एस विही अरिहो अरिहमि दलयति कमेण । आसेवणादिणा खलु सम्म दबादिमुद्धीए ।। ७०२॥ कालो पुण एतीए पक्खादी वण्णितो जिणिंदेहिं । पायं विसिट्ठगाए पुवायरिया तथा चाहु ।। ७०३ ॥ पक्खियचाउम्मासे आलोयण णियमसा उ दायवा । गहणं अभिग्गहाण य पुबग्गहिए णिवेएउं ॥ ७०४ ॥ जीयमिणं आणाओ जयमाणस्सवि य दोमसम्भावा । पम्हुसण
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