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धर्म 4 किसादिएसुंति । सफला य तीऍवि फलं नाणातो चेव विनेयं ॥ ५३४ ॥ णणु संसया पवित्ती फलसंपत्ती अज्ञानवादि संग्रहणी 10य निच्छयाओ उ । धन्नादिणाणरहिओ न हि गहणादौ कुणइ जु(ज) चं ॥ ५३५ ॥ नज्जति य तविवक्खा अपच्च- निरासः
क्खत्तेवि तस्सभिप्पाओ । भणिओववत्तिओ च्चिय मिलक्खुणातं तओऽजुत्तं ॥ ५३६ ॥ परिणामो पुण तिव्यो पावपवित्तीए बंधहेउत्ति | नत्थेत्थ विसंवादो णय णाणं कारणं एत्थ ॥ ५३७ ॥ अन्नाणिणोवि जम्हा दीसति एवं किलिट्ठभावस्स । णाणिस्स पवि-* त्तीएवि तत्तो तु ण तारिसो भावो ।। ५३८ ।। जाणतो विसखाणू पवत्तमाणोवि बीहई जह तु । ण उ इतरो तह नाणी पवत्तमाणोवि संविग्गो ॥ ५३९ ।। जो संवेगपहाणो अच्चंतमहो उ होइ परिणामो । पावनिवित्ती य परा नेयं अन्नाणिणो उभयं ॥ ५४० ॥ | संसारासारत्ते सारत्ते चेव मुत्तभावस्स । विन्नाते संवेगो पावनिवित्ती य तत्तो उ ॥ ५४१ ॥ तम्हा परलोगसमुज्जतस्स भिक्खुस्स | असढभावस्स । चरणोवगारगं इय णाणं सुत्तेविमं भणितं ।। ५४२ ।। पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठति सव्वसंजए । अन्नाणी किं काही ?, किं वा णाही छेयपावगं ? ॥ ५४३ ।। इय कह नाणेण अलं जुज्जइ वयणं इमं असंगस्स? । अण्णाणं चिय संगो कारण-1& कज्जोवयारातो ।। ५४४ ॥ तम्हा नाणी जीवो तंपि य परलोगसाहगं सिद्धं । नाणण्णाणविवेगे उवायमो चेव निरवज्जो ॥५४५॥
कत्तत्ति दारमहुणा कत्ता जीवो सकम्मफलभोगा । अस्स य अणभुवगमे लोगादिविरोहदोसोत्ति ।। ५४६ ॥ दट्टण कंचि दुहियं ९२॥
सुहियं वा एव जंपती लोगो । भुंजति सकयफलं णय वडजक्खनिवासतुल्लामण ॥ ५४७ ।। सुहदुक्खाणुहवातो चित्ताओ ण य अहेतुगो एसो । निच भावाभावप्पसंगतो सकडमो हेतू ॥ ५४८ ॥ किन्न सहावोत्ति मई भावो वा होज्ज जं अभावो वा । जइ भावो ॥९२ ॥ किं चित्तो? किं वा सो एगरूवोत्ति ॥ ५४९ ॥ जइ ताव एगरूवो निच्चोनिच्चो व हाज्ज ? जइ निच्चो । कह हेतू सो भावो?
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