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उपदेश पदे
॥१६५॥
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| अहवा जोग्गंऽपऽजोग्गंति ॥ ३४४ ॥ नय एव लोगणीई जम्हा जोगम्मि जोगववहारो । पडिमाणुप्पत्तीयवि आविगाणेणं ठिओ एत्थ है। | कर्मोद्यमा ॥ ३४५ ॥ एवं जइ कम्मं चिय चित्तं अक्खिबइ पुरिसगारं तु । णो दाणाइसु पुण्णाइभेयमोउज्झप्प भएण ॥३४६।। तारिसयं चिय | दृष्टिशुद्धौ अह तं सुहाणुबंधि अज्झप्पकारित्ति । पुरिसस्स एरिसते तदुवक्कमणाम्म को दोसो ? ।। ३४७ ।। एत्थ परंपरयाए कम्मंपिहु तारि-1 चित्रकरः संति वत्तव्वं । एवं पुरिसं चिय एरिसत्तमणिवारियप्पसरं ॥ ३४८ ॥ उभयतहाभावो पुण एत्थं णायण्णसम्मओ णवरं । ववहारोवि विषय प्रति हु दोण्हवि इय पाहण्णाइनिष्फण्णो ।। ३४९ ॥ जमुदग्गं थेवेणं कम्मं परिणमइ इह पयासेण । तं दइवं विवरीयं तु पुरिसगारो मुणे
भासादि यब्यो ॥ ३५० ॥ अहवऽप्पकम्महेऊ ववसाओ होइ पुरिसगारोत्ति बहुकम्मणिमित्तो पुण अन्झवसाओ उ दइवोत्ति ॥ ३५१ ।। णायमिह पुण्णसारो विकमसारो य दोणि वणियसुया । णिहिपरतीरधणागम तह सुहिणो पढमपक्खम्मि ॥३५२॥ दाणुवभागणिहिलाभओ दढं अविगला उ एकस्स । परतीरकिलेसागमलाभाओ एव बीयस्स ॥ ३५३ ।। रायसवणम्मि पुच्छा णिवेयणं अवितह दुविण्हंपि । दइवेयरसंजुत्ता पवायविण्णासणा रण्णा ।। ३५४ ।। एगणिमंतणमविगलसाहणजोगोऽकिलेसा चेव । भोगोविय एयस्स उ एवं चिय दइवजोगेण ।। ।। ३५५ ।। अण्णस्स वच्चओ खलु भोगम्मिवि पुरिसगारभावाओ। रायसुयहारतुट्टण रुयणे तप्पोयणाजोओ ।। ३५६ ॥ पक्खंतरणायं पुण लोउत्तरिय इमं मुणेयव्यं । पढमंतचकबट्टी सगणियलच्छेदणे पयर्ड ।। ३५७ ॥ कयमेत्थ पसंगेणं सुद्धाणाजोगतो सदा मतिमं । बडेज धम्मठाणे तस्सियरपसाहगत्तेणं ।। ३५८ ॥ तस्सेसो उ सहाबो जमियरमणुबंधई उ निय- 4॥१६५॥ मेण । दीवोव्व कज्जलं सुणिहिउत्ति कज्जंतरसमत्थं ।। ३५९ ॥ एत्तो उ दिडिसुद्धी गंभीरा जोगसंगहेसुति । भणिया लोइयदिटुंतओ तहा पुन्चमूरीहिं ॥३६०॥ साएयम्मि महबलो विमल पहा चेव चित्त परिकम्मे । णिप्फत्ति छ?मासे भूमीकम्मस्स करणं च ॥३६१।।
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