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दशशास्त्रीय उपदेश पदे
॥१६४॥
साम्यं
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भावारोग्गं तहाभिमयं ।। ३२७ ।। एयमिह होइ विरियं एसो खलु एत्थ पुरिसगारोत्ति । एयं तं दुण्णेयं एसो च्चिय णाणविसओ
8 मोहस्ख|वि ।। ३२८ ॥ आहरणं पुण एत्थं सधणयविसारओ महामंती । मारिणिवारणखाओ णामेणं नाणगम्भोत्ति ।। ३२९ ॥ बेसालीलना ज्ञान जियसत्तू राया सचिवो उ णाणगब्भो से । मित्तागम पुच्छा अत्थकत्थाणि किं कस्स ? ।। ३३०॥ मंतिस्स मारिपडणं कइया
गर्भ मंत्री
| कर्मोद्यम पक्खारउत्ति तुसिणीया । सवेऽवि मंतिणिग्गम काले मित्तिगाहवणं ।। ३३१ । पइरिके पुच्छा कह सुयदोसा पच्चओ कुसुमिणोत्ति । पूजा वारण संवाय पुत्तमालोचण णिरोहो ।। ३३२ ॥ मंजूसाए पक्खस्स भोयणं पाणगं च ताला य । अत्थं साहर रण्णो भणणमाणिच्छे तयाणयणं ।। ३३३ ।। देव इह सब्बसारं किमणेणं पक्खमेग रक्खावे । दारण्णतालसीसगमुद्दा अदृट्ट पाहरिया। ॥ ३३४ ॥ तेरसमम्मि य दियहे रण्णो धृयाए वेणिछओत्ति । मंतिसुया किल फुट्ट भवणे रण्णो महाकोवो ॥ ३३५ ।। घाएह तयं, अहवा सव्वेच्चिय डहह मत्तगा एए। किंकरगम गण्हण भंडणा य पेच्छामु देवात्त ॥ ३३६ ।। दिट्ठम्मि एत्थ जोग्गं तत्तं जाणाहि मुद्दसंवाओ । उग्घाडणे णिरूवण छुरिया वेणी य मंतिसुओ ।। ३३७ । सज्झस किमिदं देवो जाण तह विम्हओ उ सब्बेसि । तप्पुच्छ पूयणा सव्वणासणो वेणिछयाउ ।। ३३८ ॥ एत्तो उ किल पयट्टो एत्थाहं जाव एवमवत्ति । एवमचिंतं कम्मं विरियपि य बुद्धिमंतस्स ।। ३३० ।। अणिययसहावमेयं सोवकमकम्मुणो सरूवं तु । परिसुद्धाणाजोगो एत्थ खलु होइ सफलोत्ति ।। ३४० ।। एत्तो उ दोवि तुल्ला विण्णेया दिवपुरिसकारत्ति । इहरा उ णिप्फलत्तं पावइ णियमेण एकस्स ।। ३४१ ॥ दारुयमाईणमिणं पडिमाइसु जोग्गयासमाणत्तं । पच्चक्खादिपसिद्ध विहावियब्वं बुहजणेणं !! ३४२ ॥ न हि जोगे नियमेणं जायइ पडिमाइ ण य अजोगत्तं । ॥१६४॥ तल्लक्खणविरहाओ पडिमातुल्लो पुरिसगारो ॥ ३४३ ॥ जइ दारु चिय पडिमं अक्खिवइ तओ य हंत णियमेणं । पावइ सम्वत्थ इमा
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