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पश्चाशक इमीएं लद्धित्ति ।। ८६६ ।। आह ण पडिमाकप्पे सम्मं गुरुलाघवाइचिंतति । गच्छाउ विणिक्खमणाइ ण खलु उवगारगं जेण १८ भिक्षु मूलम् ॥ ८६७ ॥ तत्थ गुरुपारतंतं विणओ सज्झाय सारणा चेव । वेयावच्चं गुणवुड्ढि तहय णिप्फत्ति संताणो ॥८६८।। दत्तेगाइगहो- का प्रतिमा विहु तहसज्झायादभावओ ण हो । अंताइणोवि पीडा ण धम्मकायस्स सुसिलिटुं ।। ८६९ ।। एवं पडिमाकप्पो चिंतिज्जतो उ
ल पंचाशकम् ॥ ५४॥
निउणदिट्ठीए । अंतरभावविहूणो कह होइ विसिद्धगुणहेऊ? ।। ८७० ।। भण्णइ विसेसविसओ एमो णउ ओहओ मुणेयव्यो । दसपुबधराईणं जम्हा एयस्स पडिसहो ॥ ८७१॥ पत्थुयरोगचिगिच्छावत्थंतरतब्धिसेससमतुल्लो । तह गुरुलाघवचितासहिओ तकालवेक्खाए ।।८७२।। णिवकरल्याकिरियाजयणाए हंदि जुत्तरूवाए। अहिदट्ठाइसु छेयाइ वज्जयंतीह तह सेसं ।। ८७३।। एवं चिय कल्लाणं जायइ एयस्स इहरहा ण भवे । सव्वत्थावत्थोचियमिह कुसलं होइऽणुट्ठाणं ।।८७४॥ इय कम्मवाहिकिरियं पव्वज भावओ पवण्णस्स। सइ कुणमाणस्स तहा एयमवत्थंतरं यं ॥८७५।। तह सुत्तबुड्ढिभावे गच्छे सुत्थंमि दिक्खभावे य । पडिवज्जइ एयं खलु ग अण्णहा कप्पमवि एवं ॥ ८७६ ॥ इहरा ण सुत्तगुरुया तयभावे ण दसपुब्धिपडिसेहो । एत्थं सुजुत्तिजुत्तो गुरुलाघवचिंतबज्झमि ॥ ८७७ ॥ | अप्पपरिच्चाएणं बहुतरगुणसाहणं जहिं होइ । सा गुरुलाघवचिंता जम्हा णाओववण्णत्ति ।। ८७८ ॥ वेयावच्चुचियाणं करणणिसेहेहणमंतरायति । तंपि हु परिहरियव्वं अइसुहुमो होउ एसोत्ति ।। ८७९ ॥ ता तीए किरियाए जोग्गयं उवगयाण णो गच्छे ।
हंदि उविक्खा णेया अहिगयग्गुणे असंतमि ॥ ८८० ॥ परमो दिक्खुवयारो जम्हा कप्पोचियाणवि णिसेहो । सइ एयंमि उ भणिओ है | पयडो च्चिय पुब्बसूतीहिं ।। ८८१ ॥ अब्भुज्जयमेगयरं पडिवज्जिउकामो सोवि पवाओ (वे)। गणिगुणसलद्धिओ खलु एमेव
॥ ५४ ॥
। अलद्धिजुत्तोवि ॥८८२॥ तं चावत्थंतरमिह जायइ तह संकिलिट्ठकम्माओ । पत्थुयनिवाहिदट्ठाइ जह तहा सम्ममवमेयं ।। ८८३ ।।
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