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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पश्चाशक इमीएं लद्धित्ति ।। ८६६ ।। आह ण पडिमाकप्पे सम्मं गुरुलाघवाइचिंतति । गच्छाउ विणिक्खमणाइ ण खलु उवगारगं जेण १८ भिक्षु मूलम् ॥ ८६७ ॥ तत्थ गुरुपारतंतं विणओ सज्झाय सारणा चेव । वेयावच्चं गुणवुड्ढि तहय णिप्फत्ति संताणो ॥८६८।। दत्तेगाइगहो- का प्रतिमा विहु तहसज्झायादभावओ ण हो । अंताइणोवि पीडा ण धम्मकायस्स सुसिलिटुं ।। ८६९ ।। एवं पडिमाकप्पो चिंतिज्जतो उ ल पंचाशकम् ॥ ५४॥ निउणदिट्ठीए । अंतरभावविहूणो कह होइ विसिद्धगुणहेऊ? ।। ८७० ।। भण्णइ विसेसविसओ एमो णउ ओहओ मुणेयव्यो । दसपुबधराईणं जम्हा एयस्स पडिसहो ॥ ८७१॥ पत्थुयरोगचिगिच्छावत्थंतरतब्धिसेससमतुल्लो । तह गुरुलाघवचितासहिओ तकालवेक्खाए ।।८७२।। णिवकरल्याकिरियाजयणाए हंदि जुत्तरूवाए। अहिदट्ठाइसु छेयाइ वज्जयंतीह तह सेसं ।। ८७३।। एवं चिय कल्लाणं जायइ एयस्स इहरहा ण भवे । सव्वत्थावत्थोचियमिह कुसलं होइऽणुट्ठाणं ।।८७४॥ इय कम्मवाहिकिरियं पव्वज भावओ पवण्णस्स। सइ कुणमाणस्स तहा एयमवत्थंतरं यं ॥८७५।। तह सुत्तबुड्ढिभावे गच्छे सुत्थंमि दिक्खभावे य । पडिवज्जइ एयं खलु ग अण्णहा कप्पमवि एवं ॥ ८७६ ॥ इहरा ण सुत्तगुरुया तयभावे ण दसपुब्धिपडिसेहो । एत्थं सुजुत्तिजुत्तो गुरुलाघवचिंतबज्झमि ॥ ८७७ ॥ | अप्पपरिच्चाएणं बहुतरगुणसाहणं जहिं होइ । सा गुरुलाघवचिंता जम्हा णाओववण्णत्ति ।। ८७८ ॥ वेयावच्चुचियाणं करणणिसेहेहणमंतरायति । तंपि हु परिहरियव्वं अइसुहुमो होउ एसोत्ति ।। ८७९ ॥ ता तीए किरियाए जोग्गयं उवगयाण णो गच्छे । हंदि उविक्खा णेया अहिगयग्गुणे असंतमि ॥ ८८० ॥ परमो दिक्खुवयारो जम्हा कप्पोचियाणवि णिसेहो । सइ एयंमि उ भणिओ है | पयडो च्चिय पुब्बसूतीहिं ।। ८८१ ॥ अब्भुज्जयमेगयरं पडिवज्जिउकामो सोवि पवाओ (वे)। गणिगुणसलद्धिओ खलु एमेव ॥ ५४ ॥ । अलद्धिजुत्तोवि ॥८८२॥ तं चावत्थंतरमिह जायइ तह संकिलिट्ठकम्माओ । पत्थुयनिवाहिदट्ठाइ जह तहा सम्ममवमेयं ।। ८८३ ।। CONCOM For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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