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पञ्चाशक मूलम्.
अहिगयसुंदरभावस्स विग्धजणगतिसंकलिट्ठ च। तह चेव तं खविज्जइ एतो च्चिय गम्मए एयं ॥ ८८४ ॥ एत्तो अईव 31१८ भिक्षु णेया सुसिलिट्ठा धम्मकायपीडावि । अंताइणो सकामा तह तस्स अदीणचित्तस्स ।। ८८५ ।। नहु पडइ तस्स भावो संजमठाणाउला
प्रतिमा अविय वढेइ । ण य कायपायओविहु तयभावे कोइ दोसोत्ति ॥ ८८६ ॥ चिनाणं कम्माणं चित्तो च्चिय होइ खवणुवाओवि ।
पंचाशकम् अणुबंधछेयणाई सो उण एवंति णायचो ।।८८७॥ इहरा उ णाभिहाणं जुज्जइ सुत्तमि हंदि एयस्स । एयंमि अवसरंमी एसा खलु तंतजुत्तत्ति ॥ ८८८ ।। अण्णे भणंति एसो विहियाणुट्ठाणमागमे भणिओ । पडिमाकप्पो सिट्ठो दुक्करकरणेण विण्णेओ ॥ ८८९ ॥ विहियाणुट्ठाणंपि य सदागमा एस जुज्जई एवं । जम्हा ण जुत्तिवाहियविसओवि सदागमो होइ ॥ ८९० ॥ जुत्तीए अविरुद्धो सदागमो सावि तयविरुद्धत्ति । इय अण्णोण्णाणुगयं उभयं पडिवत्तिहेउत्ति ।।८९१।। कयमेत्थ पसंगणं झाणं पुण णिच्चमेव एयस्स । मुत्तत्थाणुसरणमो रागाइविणासणं परमं ॥ ८९२ ।। एया पवज्जियव्वा एयासिं जोग्गयं उवगएणं । सेसेणवि कायव्या केइ पइण्णाविसेसत्ति ।। ८९३ ॥ जे जमि जंमि कालंमि बहुमया पवयणुण्णइकरा य । उभओ जोगविसुद्धा आयावणठाणमाईया ।। ८९४ ॥ एएसि सइ विरिए जमकरणं मयप्पमायओ सो उ । होअइयारो सो पुण आलोएयवओ गुरुणो ।। ८९५ ।। इय सव्वमेवमवितहमाणाए भगवओ पकुवन्ता । सयसामत्थणुरूवं अइरा काहिंति भवविरह ॥ ८९६ ॥ साहुपडिमापयरणं १८ ॥ अथैकोनविंशं तपःपंचाशकं ॥१९॥
18॥ ५५ ॥ णमिऊण वद्धमाणं तवोवि (व) हाणं समासओ वोच्छ । सुत्तभणिएण विहिणा सपरेसिमणुग्गहट्ठाए ॥ ८९७ ॥ अणसणमूणोयरिया
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