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श्रीचन्द्र
र्षिकृते
ल्पबहुत्वं
पश्चसंग्रहे ॥२८९॥
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पुव्वाणं, तिनि उ भावाऽवसेसाणं ॥९८॥ थोवा गब्भयमणुया, तत्तो इत्थीउ तिघणगुणियाओ । बायरतेउकाया, तासिमसंखेज्ज है जीवानाम: पज्जत्ता ।। ९९ ॥ तत्तोऽणुत्तरदेवा, तत्तो संखेज्ज जाऽऽणओ कप्पो । तत्तो असंखगुणिया, सत्तमछट्ठी सहस्सारो ।।१००॥ सुकमि | |पंचमाए, लंतय चोत्थाए बंभताए । माहिंदसणंकुमरे, दोच्चाए मुच्छिमा मणुया ॥ १०१ ॥ ईसाणे सव्वत्थपि, बत्तीसगुणाओ | होंति देवीओ । संखेजा सोहम्मे, तओ असंखा भवणवासी ॥ १०२ ॥ रयणप्पभिया खहयरपणिदि संखेज तत्तिरिक्खीओ । | सव्वत्थ तओ थलयरजलयरवणजोइसा चेवं ॥ १०३ ।। तत्तो नपुंसखहयरसंखेज्जा थलयरजलयरनपुंसा । चउरिदितओ पणबितिई| दियपज्जत्त किंचिहिया ॥ १०४ ॥ अस्संखा पण किंचिहिय, सेस कमसो अपज ओभयो । पंचेंदिय विसेसहिया, चउतियबेइंदिया तत्तो ।। १०५ ॥ पज्जत्तबापॅरपत्तेयतरू असंखेज्ज इति निगोयाओ । पुढवी आऊ वाऊ, बायरअपजत्ततेउ तओ ॥१०६ ॥ चादरतरू निगोया, पुढवीजलवाउतेउ तो सुहुमा । तत्तो विसेसअहिया, पुढवीजलपवणकाया उ ॥ १०७॥ संखेज्जसु| हुमपज्जत्त, तेउ किंचि (च) हियभूजलसमीरा । तत्तो असंखगुणिया, सुहुमनिगोया अपज्जत्ता ॥ १०८ ॥ संखेज्जगुणा तत्तो | पज्जत्ताणतया तओ भव्वा । पडिवडियसम्मसिद्धा, वणवायरजीवपज्जत्ता ।। १०९ ॥ किंचि (च) हिया सामन्ना एए उ असंखवण | अपज्जता । एए सामन्त्रेण, विसेसअहिया अपज्जत्ता ॥ ११० ।। सुहुमा वणा असंखा, विसेसअहिया इमे उ सामन्ना। सुहुमवणा संखेज्जा, पज्जत्ता सब किंचि (ग) हिया ।। १११ । पज्जत्तापज्जत्ता, सुहुमा किंचि (च) हिंय भव्वसिद्धीया। तत्तो बायरसुहुमा, निगोयवणसह जिया तत्तो ॥११२॥ एगिंदिया तिरिक्खा, चउगइमिच्छा य अविरइजुया य । सकमाया छउमत्था, सजो-18 ४॥२८९॥ गसंसारि सब्वेवि ।।११३ ।। उवसंतखवगजोगी अपमत्तपमचदेससासाणा । मीसा विरया चउ चउ जहुत्तरं संखऽसंखगुणा॥११४
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