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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीज्योतिकरंडके ॥३६॥ 15251517CHR य केवला अहोरत्ता । सत्तत्तीस अंसा सत्तढिकरण छेएण ।। २७४ ।। चंदउऊआणयणे पव्वं पनरससंगुणं नियमा । तिहिसंखित्तं | व्यतिपात| संतं बावट्ठीभागपरिहीणं ॥२७५।। चोत्तीससयाभिहयं पंचुत्तरतिमयसंजुयं विभए। छहि उदसुत्तरेहि य सएहि लद्धा उऊ होइ ।।२७६।।11 रविधुवरासी पुव्वं व गुणिय भइए सगेण छएण । जं लद्धं सो दिवसो सोमस्स उउसमत्तीए ॥२७७॥ सो चेव धुवो रासी गुणरा-18 सीवि य हवंति ते चेव । नक्खत्तसोहणाणि य परिजाणसु पुव्वभाणयाणि॥२७८।। इइ उउपरिमाणं नाम चउदसं पाहुडं १४॥ आसोयकत्तियाणं मज्झे वइसाहचित्तमझे य । एत्थ सममहारत्तं तं विसुवं अयणमझसु ॥ २७९ ।। पन्नरसमुहुत्तदिणो दिवसेण समा य जा हवइ राई । सो होइ विसुवकालो दिणराइणं तु संधिम्मि ॥ २८० ॥ इच्छियविसुवा बिगुणा रूचूणा छग्गुणा भव-दा (करे)यव्वा । पन्बद्धे होंति तिही नायव्वा सव्वविसुवेमु ॥२८१।। रूवूणविसुवगुणिए छलसीइसय पक्खिवाहि तेणउई । पनरसभाइ लद्धा पब्वा सेसा तिही होइ ।। २८२ । इगतीसा ओयगुणा पंचहि भइयव्व तिगुण अंसा उ । तिहिओ भवन्ति सब्वेसु चेव विसुवेसु नायव्वा ॥२८३।। पब्वा य छडादिका दुवालसाहिय दसावसाणा उ। तिगमाइगावि य तिही छडुत्तरा सव्वाविसुवेसुं ॥२८४॥ छक्कट्ठारस तीसा तेयाला पंचवण्ण अट्ठट्ठी। तह य असीइ विणउइ पंचहिय सयं च सत्तरसं ॥ २८५॥ तइया नवमी य तिही पत्ररसी छट्ठी बारसी चेव । जुगपुव्वद्धे एया ता चेव हवंति पच्छद्धे ॥ २८६ ॥ रोहिणि वासव साई अदीइ अभिवड्ड मित्त पिउ-14 देवा । आसिणिवीसूदेवा अज्जमणा इइ विसुवरिक्खा ।। २८७ ॥ दक्षिणअयणे सूरो पंच विसुवाणि वासुदेवेण । जोएइ उत्तरेणवि ॥३६१॥ आइच्चो आसदेवेण ।। २८८ ।। अ॥ लग्गं च दक्षिणायण विसुवेसुवि अस्स उत्तरं अयणे । लग्गं साई विसुवेसु पंचसुवि दक्षिणं अयणे ॥ २८८ ॥ ब । दक्षिणमयणे विसुवेसु नयले भिजि रसायले पुस्से । उत्तरअयणे अभिइ रसायले नहयले पुस्से For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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