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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीज्योति-१ ॥२८९।। मंडलमज्झत्थंमि य चक्खुविसयं गमि सूरांमि । जो खलु मत्ताकाला सो कालो होइ विसुवस्स ॥२९०॥ इइ विसुवं १५॥४ तापक्षेत्रष्करंडके अयणाणं संबंधे रविसोमाणं तु बेहि य जुगम्मि । जं हवइ भागलद्धं वइवाया तत्तिया होति ॥ २९१ ॥ बावत्तरीपमाणो मुहूर्त्तवृध्य फलरासी इच्छिते उ जुगए । इच्छियवइवायपि य इच्छं काऊग आणहि ॥ २९२ ॥ जं भवइ भागलद्धं तं इच्छं निद्दिसाहि ॥३६२॥ पवृद्धिसव्वत्थ सेसेवि तस्स भेए फलरासिस्साणए सिग्धं ॥ २९३ ॥ इइ वईवायं नाम सालसमं पाहुडं १६ ॥ प्राभृतं । अट्ठसु सएसु सूरा चन्दा अभिएसु अट्ठसु सएमु (वीसई तारा) तारा उवीर हिट्ठा समा य चंदस्स नायव्वा ।। २९४ ।। छच्चेव | उ दसभाग जंबुद्दीवस्स दोषि दिवसयरा । तावति दित्तलेसा अधिभतरमण्डले सन्ता ।। २९५ ॥ चत्तारि य दस भाग जंबुद्दीवस्सा" दोवि दिवसयरा । तावति मंडले सम्बबाहिरे मंडले संता ।। २९६ ॥ मरुस्स मज्झयारे जाव य लवणस्स रुंदछब्भागो । तावायामोर | एसो सगड्डद्धीसंठिओ नियमा ॥ २९७ ॥ छत्तीसे भागसए सट्टे काऊण जंघुदीवस्स । तिरियं तत्तो दो दो भागे वड्डइ व हायइ वा ॥ २९८ ।। मंदरपरिरयरासी तिगुणे दसभाइयंमि जं लद्धं । तं हवइ तावखित्तं अधिभतरमंडलगयस्स ।। २९९ ॥ मंदरपरिरयरासी | दि| विगुणे दस भाइयंमि जलद्धं । तं हवइ तावखित्तं बाहिरए मंडले रविणो ।। ३०० ॥ आइममंडलपरिही तिगुणे दसभाइयंमि जं | लद्धं । तं हवइ तावखेत बाहिरगे मंडले रविणो ॥ ३०१॥ बाहिरपरिरयरासो विगुणे दसभाइयंमि जं लद्धं । तं होइ तावखेत्तं बाहिरए मंडले रविणो ॥ ३०२ ॥ सूरस्स मुहुनगई दिवसस्सऽभ्रूण होइ अब्भत्था । तत्तियमित्ता (दिट्ठी विगुणं दिवसप्पमाणं तु) ॥३०३ ॥ सा चेव मुहुत्तगई गुणिया दिवसेण होइ पुण्णेण । सो आयवविक्खंभो तहिं तहिं मण्डले रविणो ॥ ३०४ ॥ ॥३६२।। इइताव खित्तपमाणं १७ ॥ CAKCARRORSCORREARS For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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