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श्रीज्योति
करंडके ॥३६३॥
बारस धुवा मुहुत्ता दिवसे रत्तीवि होइ बारसिगा। छच्च उ चरा मुहुत्ता अयंति रत्तिं च दिवसं च ।। ३०५॥ रतिं अयति & अमावस्याअयणमि दक्खिणा उत्तरे दिणमयति । एवं तु अहोरत्तो तीसमुडुत्तो हवइ सब्बो ॥ ३०६ ॥ तेसीएण सएणं छण्डं भागे चरमुहु
पूर्णिमे ताण | जलद्धं सा वुड्डी छओ व दिणस्स विबेओ ॥ ३०७॥ आइच्चेण स मासेण वडए हायए य तह चेव । एक्को चव मुहुत्तो पविसंते निक्खमंते य ।। ३०८ ॥ अभितरंमि उ गए आइच्चे हवइ बारस मुहुत्ता । रयणी अह दिवसो पुण अट्ठारसओ मुणेयव्वो | ॥ ३०९ ।। बाहिरओ निखते आइच्चे हवह बारसमुहुत्तो । दिवसो अह रत्ती उण होइ उ अहारसमुहुत्ता ॥ ३१० ।। पव्वं पन्न| रसगुणं तिहिसंखित्तं बिसट्ठिभागूणं । तेसीयसएण भए जं सेस तं वियाणहि ।। ३११ ॥ तं विगुणमेव सट्ठीऍ भाइयं जं भवे तहिं लद्धं । तं दक्खिणम्मि अयणे दिवसा सोहे खिवे रत्तिं ॥ ३१२ ॥ तं चेव अयणे उत्तरंमि दिवसंमि होइ पक्खेवो । रत्तीओ वोसर्ट जाणसु राइंदियपमाणं ।। ३१३ ॥ इइ मुहुत्तवुड्डोवुड्डी१८॥
नाउमिह अमावासं जइ इच्छसि कम्मि होइ रिक्खंमि? | अवहारं ठावेज्जा तत्तियरूवेहिं संगुणए ॥ ३१४ ॥ छावट्ठी य मुहुत्ता बिसट्ठिभागा य पंच पडिपुण्णा । बावविभाग सत्तद्विगोत्थ एको भवइ भागो।। ३१५॥ एयमवहाररासिं इच्छामावाससंगुणं कुज्जा । नक्खत्ताणं एत्तो सोहणगविहिं निसामेह ।। ३१६ ।। बावीसं च मुहुत्ता छायालीसं विसट्ठिभागा य । एयं पुणव्वसुस्स य सोहेपव्वं हवइ पुण्णं ॥ ३१७ ।। बावत्तरं सयं फग्गुणीण बाणउय वे विसाहासुं। चत्तारि य बायाला सोज्झा अह उत्तरासाढा | ॥ ३१८ ।। एयं पुणव्वसुस्स य बिसट्ठिभागसहियं तु सोहणगं । एत्तो अभीइआई बिइयं वोच्छामि सोहणगं ।। ३१९ ॥अभिइस्स
४॥३६३॥ नव मुहुत्ता बिसट्ठिभागा य हॉति चउसिं । छावट्ठी य समचा भागा सत्तहिछेयकया ।। ३२० ॥ इगुणटुं पोट्ठवया तिसु चेव नबु
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