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प्रायश्चित्त पं०१६
उद्धार अवउज्झइ सल्लो ण मलिज्जइ वणो उ ।। ७५३ ॥ लग्गुद्धियम्मि बीए मलिज्जह परं अ (रम ) दूरगे सल्ले । उद्धरणमल- पञ्चाशक
णपूरण दूरयरगए तईयंमि ॥ ७५४ ॥ मा वेअणा उ तो उद्धरित्तु गालिंति सोणिय चउत्थे । रुज्झइ लहुति चेट्ठा वारिज्जइ पंचमे मूलम्.
वणिणो ॥ ७५५ ॥ राहेइ वर्ण छडे हितमितभोजी अभुंजमाणो वा । तत्तियमेत छिज्जति सत्तमए पूइमंसादी ।। ७५६ ॥ तह विय | अठायमाणे गोणसखइयादि रप्पुए वावि । कीरति तदंगछेदो सअद्वितो सेसरक्खाओ ( खट्ठा ) । ७५७ ॥ मूलुत्तरगुणरूवस्स
ताइणो परमचरणपुरिसस्स । अवराहसल्लपभवो भाववणो होइ णायव्यो ।। ७५८ ।। एसो एवंरूवो सविगिच्छो एत्थ होइ विण्णेओ । | सम्मं भावाणुगतो णिउणाए जोगिबुद्धीए ।।७५९|| भिक्खायरियादि सुज्झति अइयारो कोइ वियडणाए उ। बितिओ उ असमितो६ मित्ति कीस सहसा अगुत्तो वा ? ॥ ७६० ॥ सद्दादिएसु रागं दोसं व मणे गओ तइयगम्मि । गाउं अणेसणिज्ज भत्तादि विगिचण ★चउत्थे ।। ७६१ ।। उस्सग्गेणवि सुज्झति अइयारो कोइ कोइ उ तवेणं । तह विय असुज्झमाणे छेयविससा विसोहंति ॥ ७६२ ॥ 5 छिज्जति दूसियभावो तहोमरायणियभावकिरियाए । संवेगादिपभावा सुज्झइ णाता तहाणाओ ॥ ७६३ ।। मूलादिसु पुण अहिगत
पुरिसाभावेण नत्थि वणचिन्ता । एतेसिपि सरूवं वोच्छामि अहाणुपुवीए ।। ७६४ ॥ पाणातिवातपभितिसु संकप्पकएसु चरणविगमम्मि । आउट्टे परिहारा पुणवयठवणं तु मूलंति ॥ ७६५ ॥ साहम्मिगादितेयादितो तहा चरणविगमसंकेसे । णो (णउ) चियतवेऽकयम्मी ठविज्जति वएसु अणवट्ठो ॥ ७६६ ॥ अण्णोण्णमूढदुट्ठातिकरणतो तिव्वसंकिलेसंमि । तवसातियारपारं अंचति दिक्खिज्जइ ततो य ।। ७६७ ।। अण्णेसि पुणतब्भवतदण्णवेक्खाएँ जे अजोगत्ति । चरणस्स ते इमे खलु सलिंगचितिभेदमादीहिं ।। ७६८॥ आसयविचित्तयाए किलिट्टयाए तहेव कम्माणं । अत्थस्स संभवातो णेयपि असंगयं चेव ।। ७६९ ॥ आगममाई य जतो ववहारो
ॐARATH
*॥४७॥
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