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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वनयिक्या | दि दृष्टान्ताः दशशास्त्रीय रिउत्ति मंतिस्स अणुकंपा ॥ १२० । कम्मयबुद्धीएविहु हेरण्णियमातिया तदन्भासा । पगरिसमुति तीसे तत्तो यमि वहुसिद्धी उपदेश पदेहा॥१२१।। हेरण्णिओ हिरणं अब्भासाओ णिसिपि जाणेइ । एमेव करिसगोबिहु बीयक्खेवाति परिसुद्धं ॥ १२२ । एमेव कोलिगोऽ | विहु पुंजमाणाइ अविगलं मुणइ । डोए परिवेसंतो तुल्लं अब्भासओ देइ ।। १२३ ॥ मोत्तियउक्खेवेणं अब्भासा कोलवालपोतणया। ॥१५२॥ घडसगडारूढस्सवि एत्तोच्चिय कूवगे धारा ॥१२४॥ पवए तरंडचागा सम्मं तरणं नहम्मि वा एयं । तुण्णाए पुण तुण्णणमणायसधि | दुर्य चेव ।। १२५ ॥ वडा रहाइदारुगपमाणणाणमहवेह दक्खतं । एमेवऽपूइयम्मिवि मासाइदले मुणेयव्यं ।। १२६ ॥ घडकारपुढ| विमाणं तह सुक्कुत्तारणं च सयराहं । चित्तकरे एवं चिय वण्णातो विद्धलिहणं च ॥१२७॥ परिणामिया य अभए लोहग्गा सिप:णलागिरिवरेसु । पज्जोयाजिय वज्जण जायणया मोइओ अप्पा ॥१२८|| सेद्री पवास भज्जा धिज्जाइयसंग कुक्कुडग साहू । सीस। दारग चडी हर राया समण माजोणी ॥१२९।। कुमरे पुंडरि भाइत्थिराग पइमरणणास पब्बज्जा । खुडग लक्षण दिक्खा भग गम गीय चउबाही ॥ १३० ॥ देवी य पुष्फचूला जुवलग रागम्मि नरय सुर सुमिणे । पुच्छा अण्णिय बोही केवल भत्तम्मि सिज्झणया ॥ १३१ ॥ उदिओदय सिरिकता परिवाइय अण्णराय उवरोहे । जणमणुकंपा देवे साहरणं णियगनयरीए ॥ १३२ ॥ साहू य गंदिसेणे ओहाणाभिमुह रायगिह वीरे । तस्संतेउरपासण संवेगा निच्चलं चरणं ।। १३३ ॥धणयत्ते सुंसुमित्थी चिलाइरागम्मि धाडि गहणं तु । णयणे लग्गण मारण वसणे तब्भक्खणा चरणं ।। १३४ ॥ सावय वयंसिरागे संका णेवत्थ चिण्ह संवेगे । परिसुद्धे तकहणं वियडणमईसणपरिण्णा ॥ १३५ ॥ तह यामच्चे राया देवी वसणम्मि सग्गपडियरणा। धुत्ते दाणं पेसण चलणे मुहरम्मि य विभासा ॥ १३६ ।। खमए मंडकि थंभे विराहियाहि णिसि रायसुय मरणे । सीसे रूवगरेहा पुच्छे सुय दिक्ख चउखमगा ॥१३७।। ASSICAL ॥१५२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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