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प्रथमपद्या
श्रीदशशाखीय मूल सूत्रम्।
॥अहम् ॥ अथ पञ्चाशकमूलम्.
शकम।
नमिऊण बद्धमाण मावगधम्म समासओ बाँच्छं । सम्मत्ताई भावत्थसंगयं सुत्तणीईए ॥ १॥ परलोयहियं सम्म जो जिणवयणं मुणइ उवउत्तो । अइतिब्बकमविगमा सुकोसो सावगो एन्थ ॥२॥ तत्तन्थसहहाणं सम्मत्तमसग्गही ण एयम्मि । मिच्छत्तखओवसमा मुम्सुमाई उ होति दढं ॥ ३ ॥ सुस्सूस धम्मराओ गुरुदेवाणं जहासमाहीए । वेयावच्चे णियमो वयपडिवत्तीग ( इ ) भयणा उ ॥४॥ जं सा अहिगयराओ कम्मखओवसमओ ण य तओवि । होइ परिणामभेया लहुँति तम्हा इहं भयणा ॥५॥ सम्मा पलियपुहुत्तेऽवगए कम्माण भावओ होति । वयपभितीणि भवण्णवतरंडतुल्लाणि णियमेण ॥६॥ पंच उ अणुब्धयाइं थूलगपाणवहविरमणाईणि । उत्तरगुणा तु अण्णे दिसिब्बयाई इमेसि तु ॥ ७ ॥ थूलगपाणवहस्सा विरई दुविहो य सो वहो होइ । संकप्पारंभेहिं वज्जइ संकप्पओ विहिणा ।। ८ ॥ गुरुमूले सुयधम्मो संविग्गो इत्तरं व इयरं वा । वज्जित्तु तओ सम्मं वज्जेइ इमे य अइयारे ॥९॥ बंधवह
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