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दशशाखाय र अण्णाणपमाददोसओ नेयं । जं दीहा कायठिई भणिया एगिदियाइणं ॥ १६॥ अस्संखोसप्पिणिसप्पिणीउ एगिदियाण उ चउण्हें । मनुष्यभव उपदेश पदे ता चेव ऊ अर्णता वणस्सईए उ बोध्धव्वा ॥ १७॥ एसा य असइ दोसासेवणओ धम्मबज्झचित्ताणं । ता धम्मे जइयव्वं सम्म सइ
विनयागमो धीरपुरिसेहिं ॥१८॥ सम्मत्तं पुण इत्थं सुत्तणुसारण जा पवित्ती उ । सुत्तगहणमि तम्हा पवत्तियव्वं इहं पढमं ॥१९॥ देवी दाहल ॥१४६|| एगत्थेभप्पासाय अभय वणगमणं । रुक्खुवलद्धहिवासण बंतरतोसे सुपासाओ।। २० ॥ उउ समवाए अंबग अकाल दोहलग पाण
पत्तीए । विज्जाहरणं रण्णा दिट्ठो कोवोऽभयाणत्ती ॥ २१ ॥ चोरनिरूवण इंदमह लोग नियरंमि अप्पणा ठिअओ । चोरस्स कए नट्टिय बहकमारिं परिकहिंसु ॥२२॥ काइ कुमारी पइदेवयत्थमारामकसमगह मोक्खो । नवपरिणीयम्भुवगमपइकहण विसज्जणा | | गमणं ॥२३।। तेणगरक्खसदसण कहण मुयणमेव मालगारेणं । अक्खय पञ्चागय दुकरंमि पुच्छाइ नियभावो ॥२४॥ इसालुगाइणाणं लाचारग्गह पुच्छ विज कहणाओ। दंडो तदाणाऽऽसण भूमी पाणस्सऽपरिणामो।। २५ ॥ रण्णो कोबो एयं वितहं अभय विणउत्तम | पाणस्स । आसण भूमी राया परिणामो एवमण्णत्थ ॥२६॥ विहिणा गुरुविगएणं एवं चिय मुत्तपरिणती होइ । इहरा उ मुत्तगहण विवज्जयफलं मुणेयव्वं ॥ २७ ॥ समणीयपि जरुदये दोसफलं चव हंत सिद्धमिण । एवं चिय मुत्तपिहु मिच्छत्तजरोदए णेयं ॥२८॥ | गुरुणावि मुत्तदाणं विहिणा जोग्गाण चेव कायचं । सुत्ताणुसारओ खलु सिद्धायरिया इहाहरणं ॥ २९ ॥ चंपा धण सुंदरि तामलित्ति बसुणंद सङ्घसंबंधो। सुंदरिणंदे पीती समए परतीरमागमणे ॥ ३० ॥ जाणविपत्ती फलग तीरे उदगत्थि सीह वाणरए। सिरिउररण्णो सुंदरि गह रागे निच्छ कह धरणा ॥३|| चित्तविणोए वाणरणटुंमी जाइसरण संवरणं । देवपरिच्छा निय रूव कहण |
मा॥१४६॥ ₹रण्णो उ संबोही ।। ३२ ।। सावत्थी सिद्धगुरु विउब दिक्खा परिच्छ सामइए। आलावगा णिमित्ते अदाण कोवेतरा देवे ॥३शा।
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