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राधाबंध:
उपदेश
पदेषु ॥२०॥
बावीसहिं ण विद्धा तेवीसइमेण मग्गियाइ जया । अब्भासाओ विद्धा तेहिं परिपंथिगहिपि ।। ९४० ॥ सो तजएण सइ उक्खयासि- पुरिसदुगभीइओ गुरुणा । तह गाहिओत्ति भेत्तुं जहठ्ठचक्के तओ विद्धा ।। ९४१ ।। रायसुओ इह साहू अग्गियगाई कसायपुरिसा ऊ। रागद्दोसा खोभे मरणं असई भवावत्ते ॥ ९४२ ।। रायसुया उ परीसह सेसा उवसग्गमाइया एत्थ । गाहण सिक्खा कम्मट्ठभेयओ | सिद्धिलाभो उ ॥ ५४३ ।। णो अण्णहावि सिद्धी पाविज्जह ज तओ इमीए उ । एसो चेव उवाओ आरंभा बढमाणो उ ॥९४४॥ मग्गण्णुणो तहिं गमणविग्घ कालेण ठाणसंपत्ती । एवं चिय सिद्धीए तदुवाओ साहुधम्मोत्ति ॥ ९४५ ॥ एवंविहं तु तत्तं णवरं | | कालोऽवि एत्थ विण्णेओ । ईसि पडिबंधगो च्चिय माहणवाणिरायणाएण।।९४६||सत्थरिथ माहणपुर वणि जायण सुद्धभूमिगहपाए। णिहि वणि कहणं अग्गह रण्णा सिटे य पण्णवणा ।। ९४७ ।। सुत्तुट्ठियांचतणमण्णया य सव्वेसि मिच्छ गह विग्धं । मिहु किमियंति वितके केवलि कलि चाग भागगहो ॥ ९४८ ॥ एवमिह दुस्समेऽयं कलुसइ भावं जईणवि कहिंचि । तहवि पुण कज्जजाणा हवंति एएच्चिय जहए ।। ९४९ ॥ अण्णे भणंति तिविहं सययविसयभावजोगओ णवरं । धम्मम्मि अणुट्ठाणं जहुत्तरपहाणरूवं तु ॥९५०112 एवं च ण जुत्तिखमं णिच्छयणयजोगओ जओ विसए । भावेण य परिहाणं धम्माणुट्ठाणमो किह णु ? ॥ ९५१ ।। ववहारओ उ जुज्जइ तहा तहा अपुणबंधगाईमुं । एत्थ उ आहरणाई जाहासंखणमेयाई ॥९५२॥ सययम्भासाहरण आसेविय जाइसरणहेउत्ति। आजम्मं कुरुचंदो मरिउं णरगाओ उच्चट्टो ॥ ९५३ ॥ मायापिइपीडवत्ती गिलाणभेसज्जदाणमाईहिं । तह चिइणिम्मलकरण जाईसरणस्स हेउत्ति ।। ९५४ ॥ णिवपरिवारुवलमा सरणं भीओ कह पुणो एत्थ? | ठिइमृगत्तासेवण णाओ विज्जेहिं णिहोसो ॥९५५ ॥ मंतिणिवयण जाणण धण्णो सरणाओ कोइ उव्विग्गो । भवीठइंदसणकहणं गुणकरमेयस्म तहिं जुत्तो ।। ९५६ ।। भृसिय
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