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स्त्रीय मूल
श्रादशशानाला पयट्टमाणस्स ।।८२।। णाऊण य तब्भावं जह होइ इमस्स भाववुड्डित्ति । दाणाबदेसाओ अणेण तह एत्थ जइयव्वं ।।८३।। णाणाइगुणजओ द्वितीयपश्चा
खलु णिरभिस्संगो पयत्थरसिगो य। इय जयइ न उण अण्णो गुरूवि एयारिमो चेव ।।८४॥ धण्णाणमेयजोगो धण्णा चेहँति एयणी-2 शकम् । सूत्रम् ।
ईए । धण्णा बहु मण्णन्ते धग्णा जे ण प्पदुसन्ति ।।८५|| दाणमह जहासत्ती सद्धासंवेगकमजुयं णियमा । विहवाणुमारओ तह जणो॥६॥
वयारो य उचिओत्ति ।। ८६ ।। अहिगयगुणसाहम्मियपीइबोहगुरुभत्तिवुड्डी य। लिंगं अव्यभिचारी पइदियहं सम्मदिक्खाए ।।८७|| परिसुद्धभावओ तह कम्मखओवसमजोगओ होइ । अहिगयगुणवुड्डी खलु कारणओ कजभावेण।।८८॥ धम्मम्मि य बहुमाणा पहाणभावेण तदगुरागाओ । साहम्मियपीतीए उ हंदि वुड्डी धुवा होइ ।।८९ । विहियाणुढाणाओ पाएण सब्बकम्मखओवसमा । णाणावरणावगमा णियमेणं बोहबुड्डित्ति ।।९०॥ कल्लाणसंपयाए इमीऍ हेऊ जओ गुरू परमो। इय बोहभावओ चिय जायइ गुरुभत्तिबुड्डीबि ।।९१॥ इय कल्लाणी एमो कमेण दिक्खागुणे महासत्तो । सम्मं समायरन्तो पावइ तह परमदिक्खंपि ।।९२।। गरहियमिच्छायारो भावणं जीवमुत्तिमणहविडं। णीसेसकम्ममुक्को उवेइ तह परममुनिपि।।९३॥ दिक्खाविहाणमेयं भाविजतं तु तन्तणीतीए। सइअपुणबंधगाणं कुग्गहविरह लहुं कुणइ ॥९४|| इति दीक्षापश्चाशकम् ।।
नमिऊण वद्धमाणं सम्मं चोच्छामि वंदणविहाणं । उकोसाइतिभेयं मुद्दाविष्णासपरिसुद्धं ॥ ९५ ॥ णवकारेण जहण्णा दंडगथुइजुयल मज्झिमा णेया। संपुष्णा उक्कोसा विहिणा खलु वंदणा तिविह। ।। ९६ ॥ अहवावि भावभेया ओघेण
अपुणबंधगाईणं। सब्यावि तिहा णेया सेसाणमिमी ण समए ।। ९७ ॥ पारण तिब्वभावा कुणइ ण बहु मणई भवं घोरं । 3 उच्चियहिई च सेवइ सव्वत्थवि अपुणबंधोति ।। ९८ ॥ सुस्मस धम्मराओ गुरुदेवाणं जहासमाहीए। वेयावच्चे णियमो सम्मद्दिहिस्स ॥६॥
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