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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदेषु ॥१९ ॥ SORRRRORENA चित्तो ।।८५२॥ उभयण्णूविय किरियापरो दढं पवयणाणुरागीय | ससमयपण्णवओ परिणओ य पण्णो य अच्चत्थं ॥८५३।। जो हेउवा-1/पदवाक्यायपक्खम्मि हेउओ आगमे य आगमिओ। सो ससमयपन्नवओ सिद्धतविराहगो अण्णो ॥ ८५४ ॥ एत्तो सुत्तविमुद्धी अत्थ- थोदयः विसुद्धी य होइ णियमेणं । सुद्धाओ य इमाओ णाणाईया पयर्टेति ॥ ८५५ ॥ सुत्ता अत्थे जत्तो अहिगयरो णवरि होइ कायन्यो । एत्तो उभयविसुद्धित्ति मूयगं केवलं सुत्त ॥ ८५६ ॥ अत्थो वक्खाणंति य एगट्टा एत्थ पुण विही एसो | मंडलिमाई भणिओ परिसुद्धो पुबसूरीहिं ॥८५७॥ मंडलि णिसज्ज अक्खा किइकम्मुस्सग्ग वंदणं जेटे । उवओगो संवेगो पसिणुत्तर संगयत्थति।।८५८|| सीसविसेसे णाउं सुतत्थाइ विहिणा व काऊणं । वक्खाणिज्ज चउद्धा सुत्तपयत्थाइभएणं ।। ८५९ ॥ पयवकमहावकत्थमेदंपज्जं च । | एत्थ चत्तारि । सुयभावावगमम्मी हंदि पगारा विणिहिट्ठा ॥ ८६० ॥ संपुण्णेहिं जायइ सुयभावावगमो इहरहा उ । होइ विवज्जा सोऽवि हु अणिदृफलओ य सो णियमा ॥८६१॥ एएसिं च सरूवं अण्णेहिवि वणियं इहं णवरं । सत्तुग्गहणदृद्धाणभट्ठतण्णाण-11 | णाएणं ।। ८६२ ।। दट्टण पुरिसमेतं दूरे णो तस्स पंथ पुच्छत्थं । जुज्जइ सहसा गमणं कयाइ सत्तू तओ होज्जा ।। ८६३ ।। वेस| विवज्जासम्मिवि एवं बोलाइएहिं तं णाउं । तत्तो जुज्जइ गमणं इट्ठफलत्थं णिमित्तेणं ।। ८६४ ॥ एवं तु पयत्थाई जोएज्जा एत्थ तंतणीइए । अइदंपज्जं एवं अहिगारी पुच्छियब्वोत्ति ॥ ८६५ ।। हिंसिज्ज ण भूयाई इत्थ पयत्थो पसिद्धगो चेव । मणमाइएहिं पीड सव्वेसिं चेव ण करिज्जा ।। ८६६ ।। आरंभ पमत्ताणं इत्तो चेइहरलोचकरणाई । तकरणमेव अणुबंधओ तहा एस वच्चत्थो ॥१९५॥ | ।। ८६७ ।। अविहिकरणम्मि आणाविराहणा दुट्ठमेव एएसि । ता विहिणा जइयव्यंति महावकत्थरूवं तु ।। ८६८ ॥ एवं एसा अणुबंधभावओ तत्तओ कया होइ । अइदंपज्जं एयं आणा धम्मम्मि सारोत्ति ॥८६९ ॥ एवं चइज गंथं इत्थ पयत्थो पसिद्धगोल For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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