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उपदेश पदेषु
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चित्तो ।।८५२॥ उभयण्णूविय किरियापरो दढं पवयणाणुरागीय | ससमयपण्णवओ परिणओ य पण्णो य अच्चत्थं ॥८५३।। जो हेउवा-1/पदवाक्यायपक्खम्मि हेउओ आगमे य आगमिओ। सो ससमयपन्नवओ सिद्धतविराहगो अण्णो ॥ ८५४ ॥ एत्तो सुत्तविमुद्धी अत्थ- थोदयः विसुद्धी य होइ णियमेणं । सुद्धाओ य इमाओ णाणाईया पयर्टेति ॥ ८५५ ॥ सुत्ता अत्थे जत्तो अहिगयरो णवरि होइ कायन्यो । एत्तो उभयविसुद्धित्ति मूयगं केवलं सुत्त ॥ ८५६ ॥ अत्थो वक्खाणंति य एगट्टा एत्थ पुण विही एसो | मंडलिमाई भणिओ परिसुद्धो पुबसूरीहिं ॥८५७॥ मंडलि णिसज्ज अक्खा किइकम्मुस्सग्ग वंदणं जेटे । उवओगो संवेगो पसिणुत्तर संगयत्थति।।८५८|| सीसविसेसे णाउं सुतत्थाइ विहिणा व काऊणं । वक्खाणिज्ज चउद्धा सुत्तपयत्थाइभएणं ।। ८५९ ॥ पयवकमहावकत्थमेदंपज्जं च । | एत्थ चत्तारि । सुयभावावगमम्मी हंदि पगारा विणिहिट्ठा ॥ ८६० ॥ संपुण्णेहिं जायइ सुयभावावगमो इहरहा उ । होइ विवज्जा
सोऽवि हु अणिदृफलओ य सो णियमा ॥८६१॥ एएसिं च सरूवं अण्णेहिवि वणियं इहं णवरं । सत्तुग्गहणदृद्धाणभट्ठतण्णाण-11 | णाएणं ।। ८६२ ।। दट्टण पुरिसमेतं दूरे णो तस्स पंथ पुच्छत्थं । जुज्जइ सहसा गमणं कयाइ सत्तू तओ होज्जा ।। ८६३ ।। वेस| विवज्जासम्मिवि एवं बोलाइएहिं तं णाउं । तत्तो जुज्जइ गमणं इट्ठफलत्थं णिमित्तेणं ।। ८६४ ॥ एवं तु पयत्थाई जोएज्जा एत्थ तंतणीइए । अइदंपज्जं एवं अहिगारी पुच्छियब्वोत्ति ॥ ८६५ ।। हिंसिज्ज ण भूयाई इत्थ पयत्थो पसिद्धगो चेव । मणमाइएहिं पीड सव्वेसिं चेव ण करिज्जा ।। ८६६ ।। आरंभ पमत्ताणं इत्तो चेइहरलोचकरणाई । तकरणमेव अणुबंधओ तहा एस वच्चत्थो
॥१९५॥ | ।। ८६७ ।। अविहिकरणम्मि आणाविराहणा दुट्ठमेव एएसि । ता विहिणा जइयव्यंति महावकत्थरूवं तु ।। ८६८ ॥ एवं एसा अणुबंधभावओ तत्तओ कया होइ । अइदंपज्जं एयं आणा धम्मम्मि सारोत्ति ॥८६९ ॥ एवं चइज गंथं इत्थ पयत्थो पसिद्धगोल
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