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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी ४ा सव्वागमप्पसिद्धं मेहुणभावंमि पावमच्चत्थं । तह परमसंकिलेसो अणुहवसिद्धो उ सव्वेसि ।। ९६७ ॥ पामागहितस्स जहा कंडुयणं | मैथुने | दुक्खमेव मूढस्स । पडिहाइ सोक्खमतुलं एवं सुरयंपि विनेयं ॥ ९६८ ॥ जह तकरणे दोण्हवि तीए वुड्डी तओ य देहस्स । होइन सदोषता विणासो एत्थवि तह नेओ सुगइदेहस्स ॥ ९६९ ।। मोहग्गिसंपलित्तं तं अप्पाणं च विझवेऊण । एवं सुहभावो च्चिय हतासिद्धी मुणेयव्वो ॥ ९७० ॥ पडिसेवणेवि तस्सा अहिया रागादयो उ नियमेणं । अमेसि तदभाववि पतणुया चेव दीसंति ॥ ९७१ ॥ सइ चरणविग्धमउलं उस्सुगमेवं नियत्तइ ण जाउ । ता तन्निवित्तिपवणो वज्जेज्जा इत्थिपरिभोगं ।। ९७२ ॥ उस्सुगविणिवित्तीवि य जा सम्मन्नाणपुब्विगा होति । सा सुंदरा ण जाहियविसयपवित्तीएँ लोएवि ॥ ९७३ ॥ जह चेव कुट्ठिणोऽपत्थवत्थुविसयं ण तस्स जोगेणं । भदं नियत्तमाणं उस्सुगमेवं इमंपित्ति ।। ९७४ । आसेवणाएँ एवं सुहझाणाभावतो अजुत्तमिणं । पासवणादिन्च | तओ कायठिती होइ कायञ्चा ॥९७५।। आसेवणाए तिस्सा तग्गयचिंतावियावियो होइ। मोहसहावातो जओ कत्तो झार्ण सुह तस्स! ॥ ९७६ ॥ किंच विवेगप्पभवं तयंति थीविग्गहेवि य पवित्ती । कलिमलभरिए जस्स उ तस्स विवेगो कहं अस्थि ? ॥ ९७७ ॥ नय भावमंतरेणं तत्थ पवित्ती तओ धुवो रागो । तब्भावम्मि य इहई बीयपदं नात्थ नियमेणं ॥९७८ ॥ पाणिवहोविय नियमा [2 इत्थीज़ोणी जतो अजोणीहिं । पाणिहि घणसंसत्ता परिभोगे तेसि वावत्ती ॥ ९७९ ॥ जह उ किरिर)णालिगाए धणियं मिदुरूयपो-४ म्हभरियाए । तदभावं कुणमाणो तत्तो कणगो तहिं बिसइ ।। ९८०॥ इय घणसंसत्ताए जोणीए इंदियंपि पुरिसस्स । तदभावं कुणमाणं नियमा विसइत्ति विन्नेयं ॥ ९८१ ॥ पडिसिद्धो य तओ जं सव्वेहिवि धम्मसत्थयारेहिं । तप्पडिसेहाओ तओ सफलो नियमो | 2 भवे तासि ।। ९८२ ॥ एवं च पयइसावज्जओ इहं इत्थिभोगपडिसेहो । जुत्तो निरवज्जत्ता नतु दिक्खादीण भावाणं ।। ९८३ ।। RAGAR ॥११॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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