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संग्रहणी
॥११॥
भावाण जेण गुणदोसा | जुज्जति तेण तस्सा एवं खलु संगतं उभयं ।। ९५० ॥ जइ एवं धणनासे तओ निमित्तंति तस्स दोसो उ ||Bा मथुन अह णो निमित्तमिहई इतरत्थ तयंति का जुत्ती ? ॥ ९५१ ॥ इय वत्थुसहावं जाणिऊण सुमणो उ णो पयट्टेज्जा । चोरियभावे तह | सदोषता | या बीहेज्ज कलंकमरणातो ॥ ९५२ ॥ हरिऊण य परदब्ब पूर्य जो कुणइ देवतादीणं । दहिऊण चंदणं सो करइ अंगारवाणिज| ॥ ९५३ ॥ लोगम्मि य परिवादं कुकम्मपडिसेहणेण रक्खेज्जा। तह रक्खियम्मि नियमा परलोए नत्थि किंचि भयं ॥ ९५४ ॥ गहितो य अमोक्खाए निच्चं चिय एत्थ मरणकेसरिणा । सब्बो जीवो तम्हा करेज्ज सइ उभयलोगहियं ॥ ९५५ ॥
मेथुने-केई भणंति पावा इत्थीणासेवणं न दोसाय । सपरोवगारभावाद(दुस्सुगविणिवित्तितो चेव ।। ९५६ ।। तत्तो सुहझाणातो पासवणुचारखेलणातेणं । नियमस्स निष्फलत्ता अतिप्पसंगाउ अविय गणो ॥ ९५७ ।। मोहग्गिसंपलितं त अप्पाणं च विज्झयेऊणं ।। सुहभावातो सपरुवगारो कह होइ दोसाय ? ॥ ९५८ ॥ सव्वद्धा विग्धकरं चरणस्सासेवणं विणा तीए। कह णु निवत्तति पावं उस्सुगमिह सुप्पसिद्धमिण।।९५९॥ आसेवणाएँ जायइ जं च विरागो तओ सुहज्झाणं । पासवणादि व तओ कायठिती होति कातन्वा ॥ ९६० ॥ णियमेऽवि तासि न फलं पीडाभावातो कस्सइ तहाधि । तस्स करणे ण कीरति दिक्खाणियमोवि चिंतमिदं ।। ९६१ ॥ पासवणाईण तहा किन्नो णियमोत्ति, देहपीडाओ ? । इतरनिवित्तीएँ तई किंणो, तह गेहिमादीया ॥ ९६२ ।। तम्हा रागादिविवज्जिएण पासवणमादिकिरियव्व । वेदम्मि उदिनम्मी थीपडिसेवावि कायव्वा ॥९६३।। एवमिह कम्मगुरुणो मिच्छादिट्ठी अणारिया केई । इंदियकसायवसगा मग्गं नासेंति मंदमती॥ ९६४ ॥ सपरोभयपावातो रागादिपसत्तिओ दढतरागं । सुहझाणाभावातो जल-र
॥११७१ गिंधणखेवणातेणं ।।९६५|| नियमा पाणिवहातो तप्पडिसेवातो चेव इत्थीणं । पडिसेवणा ण जुत्ता मोक्खत्थं उज्जयमतीणं ॥९६६॥
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