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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie उपदेश देव पुरुष कारी पदेषु ॥२०४॥ गाओ ॥ १००८॥ जइ सव्वहा अजोग्गेवि चित्तया हंदि वणियसरूवा । पावइ य तस्सहावत्तविसेसा णणु अभव्वस्स ॥ १००९ ।। अह कहवि तबिसेसो इच्छिज्जइ णियमओ तदक्खेवा । इच्छ्यिसिद्धी सब्वे चित्तयाए अणेगता ॥ १०१० ।। अणिययसहावयावि हु ण तस्सहावत्तमंतरेणत्ति । ता एवमणेगंतो सम्मंति कयं पसंगेणं ॥१०११ ॥ एवंपि ठिए तत्ते एयं अहिगिच्च एत्थ धीराणं । जुत्तं विसुद्धजोगाराहणमिह सब्बजत्तेणं ॥ १०१२ ॥ थेवोवि हु अतियारो पायं जं होति बहुश्रीणट्ठफलो । एत्थं पुण आहरणं | विनयं सूरतेयनियो ।। १०१३ ॥ नरमुंदखुत्तं सोउं पउमावती' णयरीए । देवीसहितो राया निक्खंतो सूरतेओत्ति ।। १०१४ ॥ पव्यज्जकरण कालेण गयउरे साहु साहुणीकप्पो । विण्डुसुयदत्त लेखिग रागो तत्थेव परिणयणं ।। १०१५॥ जह कह साहुसमीवेवि दुक्कर नत्थि हंत रागस्स । इय आह सूरतेओ देवी किं नीयबोल्लाए ? १०१६ ।। इय सुहुमरागदोसा बंधो नालोइयम्मि कालो | य । सुर भोग चवण वणिलंखगेहजम्मो कलग्गहणं।।१०१७||अन्नत्याग कालेण दंसणं चखुराग परिणयणं । गरिहा हिंडण जतिदसणाओ | सरणेण वोही य ॥१०१८।। इय थोवोऽवइयारो एसो एयाण परिणओ एवं । सुद्धे पुण जोग्गम्मी दुग्गयनारी उदाहरणं ॥१०१९।। सुब्बति दुग्गयनारी जगगुरुणो सिंदुवारकुसुमेहि । पूजापणिहाणेणं उववना तियसलोगम्भि ॥ १०२०॥ कायंदीओसरणे भत्ती पूजत्थि दुग्गयत्ति ततो । तह सिंदुवारगहणं गमणंतर मरण देवत्तं ॥ १०२१॥ जणदगसिंचण संका मोहो भगवंत पुच्छ कहणा य । आगमणे एसो सा विम्हय गंभीर धम्मकहा ॥१०२२।। एगपि उदगबिंदु जह पक्खित्तं महासमुद्दम्मि । जायति अक्खयमेवं पूजावि हु वीयरागेसु ॥१०२३।। उत्तमगुणबहुमाणो पयमुत्तमसत्तमज्झयारम्मि । उत्तपधम्मपसिद्धी पूजाए वीयरागाणं ॥१०२४|| एएणं बीजेणं दुक्खाई अपाविऊण भवगहणे । अच्चतुदारभोगो सिद्धो सो अट्ठमे जम्मे॥१०२५|| कगगउरे कणगधाराया होऊग सरय छणगमणे। सरकर ॥२०४ ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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