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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म जावसिद्धिः 18 वामोहो ॥ ६१ ॥ अह धम्मी तन्ततरसिद्धो अन्भुवगमम्मि य पदोसो । धणिमित्तेण तु भेया. ण य भृतेहिं तदुप्पत्ती ॥ ६२ ॥ संग्रहणी जं कारणाणुरूवं कज्जं भूयाणमणणुरूवं च । चेतनं भणियमिणं सिय सेगसरेहि वहिचारो ॥ ६३ ।। संगपि भूयसमुदयरूवं हंदि उ | सरोऽवि तह चेव । इय अणुरूवत्तं चिय भेदे तत्तंतरावत्ती ।। ६४ ॥ सिय वइचित्तं दिटुं सहावभेदेण भूतकज्जाणं । चेतनस्सवि एवं तकज्जत्तम्मि किमजुत्तं ॥६५।। जमखिलतकज्जाणं, विलक्खणं सव्वहा अमुत्तादि । तस्साहन्मम्मि (वि) य किमिह दाकोसपाणं विणा माणं? ॥६६॥ तब्भावम्मि य भावो ण परासुरचेयणो जतो काओ । दीसइ ण तत्थ वाऊ सति सुसिरे सो कह ण होज्जा ॥ ६७ ॥ण य तं कएवि दीसइ पाणापाणूणऽभावतो णो चे। णो जीवाभावातो किमेत्य माणति वत्तव्यं ॥६८॥ | तेयाभावातो ण तं उवणीते तम्मि पावती भावो । अह सो विसिङगो चिय वइसिहं किंकतं तस्स ? ॥ ६९ ।। अह नु सभावकयं | चिय ण पमाणमिहावि साहगं किंच ? । अप्पतरं दीसिज्जा तदभावे सेसभावातो ॥ ७० ॥ तह पुढवादिसमुदया किं कुसलकया | ण होइ चेतनं? । सम्बत्थ अविसेसेणं जत्तणवि कीरमाणं तु ॥ १॥ णत्थित्थीकुच्छिसमं तस्समुदायस्स ठाणमण्णंति । एवुभियपमुहाणं पावइ णणु चेयणाभावो ॥ ७२ ।। अह तधिहपरिणामो णस्थि ण जीवोत्ति णिच्छओ केणं ? । चेतनाभावेणं | जीवाभावेऽवि सो तुल्लो ॥ ७३ ।। ण य इह मज्जंगाणं न होइ अविसेसतो तु मदसत्ती । जं कुसलनिउत्ताणं नायाणुगयं न | तेणेदं ।। ७४ ॥ तदभावम्मि य भावो सिद्धा मोत्तेसु मोक्खवातीणं । आगमपामण्णातो जह तह उवरि फुडं वोच्छं ॥ ५ ॥ | सब्बेसि तओऽसिद्धो अतो असिद्धत्ति तुल्लमेवेदं । भूतेहिं चेतनं जायइ विबुहाण जमसिद्धं ॥ ७६ ॥ ण य मज्जंगेहिं इह मद| सत्ती जुज्जती विणा जीवं । तम्हा पइनहेऊदिहता तित्रिवि अजुत्ता ॥ ७७ ॥ किंचेयं मदसत्ती किं मज्जे पाणगे तदाधारे ? || %AMAKASARALA SARA ॥६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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