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उपदेश मालायां
॥२२६॥
इंदिआणि धाएहऽणं पयत्तेणं । अहियत्थे निहयाई, हियकज्जे पूयणिज्जाई ।। ३२९ ।। जाइकुलरूवबलसुअतवलाभिस्सरिय अटुमयमत्तो । एयाई चिय बंधइ, असुहाइ बहुं च संसारे ॥ ३३० ॥ जाईए उत्तमाए, कुले पहाणम्मि रूवमिस्सरियं । बलविज्जाय तवेण य, लाभमएणं च जो खिंस ॥ ३३१ ॥ संसारमणवयग्गं, नीयट्ठाणाई पावमाणो य । भमइ अणंतं कालं, तम्हा उ मए विवज्जिज्जा ॥ ३३२ ।। युग्मम् ।। सुटुंऽपि जई जयंतो, जाइमयाइसु मज्जई जो उ । सा मेअज्जरिसि जहा, हरिएसबलु व्ध परिहाई
न्दियाणि, ॥ ३३३ ।। इत्थिपसुसंकिलिहूं, वसहिं इत्थीकहं च बज्जतो । इत्थिजणसंनिसिम्जं, निरूवणं अंगुवंगाणं ।। ३३४ ॥ पुब्बरयाणुस्स
मदाः रणं, इत्थीजणविरहरूबविलय च । अइवह अइबहुसो, विवज्जयंतो अ आहारं ।। ३३५ ।। बज्जतो अ विभूसं, जइज्ज इह बंभचर-14 गुत्तीसु । साह तिगुत्तिगुत्तो, निहुओ दंतो पसंतो अ॥३३६।। त्रिभिर्विशेषकम् ॥ गुज्झारुवयणकक्खोरुअंतरे तह अणंतर दटुं। साहरइ तओ दिहूिँ, न य बंधइ दिट्टिए दिदि ।। ३३७ ॥ सज्झाएण पसत्थं, झाणं जाणइ य सब्वपरमत्थं । सज्झाए बर्दृतो, खणे। खणे जाइ वेरग्गं ॥ ३३८ ॥ उड्डमहतिरियलोए, जोइसवेमाणिया य सिद्धी य । सब्बो लोगालोगो, सज्झायविउस्स पच्चक्खो ॥ ३३९ ।। जो निच्चकाल तवसंजमुज्जओ नवि करेइ सज्झाय | अलसं सुहसील जणं, नवि तं ठावइ साहुपए ॥ ३४०॥विणओर
सासणे मूलं, विणीओ संजओ भवे । विणयाओ विप्पमुक्कस्स, कओ धम्मो कओ तबो ? ॥ ३४१ ।। विणओ आवहइ सिरिं, लहइ हविणीओ जसं च कित्तिं च । न कयाइ दुबिणीओ, सकज्जसिद्धिं समाणइ ।। ३४२ ॥ जह जह खमइ सरीरं, धुवजोगा जह जहा नाम हायति । कम्मक्खओ अ विउलो, विवित्तया इंदियदमो अ ॥३४३ ॥ जइ ता असक्कणिज्ज, न तरसि काऊण तो इमं कीस ।
॥२२६॥ अ-पायत्तं न कुणसि, संजमजयणं जईजोगं ? ॥ ३४४ ॥ जायम्मि देहसंदेहयम्मि जयणाइ किंचि सेविज्जा । अह पुण सज्जो अ
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