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श्रीदशशा-18| कालो । तत्थावोच्छिण्णो जं णिच्चं तकरणभावोत्ति ॥१५२॥ तत्थ सुइणा दुहावि हु दव्वे हाएण सुद्धवत्थेण । भावे उ अवत्थोचि-16| ४ पूजा
| यविसुद्धवित्तिपहाणेण ॥१५३ ।। ण्हाणाइवि जयणाए आरंभवओ गुणाय णियमेण । सुहभावहेउओ खलु विष्णेयं कूवणाएणं पञ्चाशकम् सूत्रम् ।
।। १५४ ।। भूमीपेहणजलछाणणाइ जयणा उ होइ हाणाओ । एत्तो विसुद्धभावो अणुहवसिद्धो चिय बुहाणं ॥ १५५ ॥ अन्नत्थारंभवओ धम्मे णारंभओ अणाभोगो । लोए पवयणखिसा अबोहिवीयंति दोसा य ॥ १५६ ॥ अविसुद्धावि हु वित्ती एवं चिय होइ अहिगदोसाउ । तम्हा दुहावि सुइणा जिणपूजा होइ कायव्वा ।। १५७ ॥ गंधवरधूवसवोसहोहिं उदगाइएहिं चित्तेहिं । सुरहिविलेवणवरकुसुमदामबलिदीवएहिं च ।। १५८ ॥ सिद्धत्थयदहिअक्खयगोरोयणमाइएहिं जहलाभं । कंचणमोत्तियरयणाइदामएहिं च विविहेहिं ।युग्मम् ॥१५९||पवरेहिं साहणेहिं पायं भावोऽवि जायए पवरो । ण य अण्णो उवओगो एएसि सयाण लढयरो ॥ १६० ।। इहलोयपारलोइयकज्जाणं पारलोइयं अहिगं । तंपि हु भावपहाणं सोवि य इय कज्जगम्मोत्ति ।। १६१ ॥ ता नियविहवणुरूवं विसिहपुप्फाइएहिं जिणपूजा । कायव्वा बुद्विमया तम्मी बहुमाणसारा य ॥ १६२॥ एसो चेव इह विही विसेसओ सबमेव जत्तेण । |जह रेहति तह सम्म कायव्बमणण्णचेडेणं ।। १६२ ।। वत्थेण बंधिऊणं णासं अहवा जहासमाहीए । वज्जेयव्य तु तदा देहम्मिवि कंडयणमाई ॥ १६४ ॥ भिच्चावि सामिणो इय जत्तेण कुणंति जे उ सणिओगं । होति फलभायणं ते इयरेसि किलेसमित्तं तु ॥१६५ ॥ भुवणगुरूण जिणाणं तु (ण वि) विसेसओ एव (य) मेव दहव्वं । ता एवं चिय पूया एयाण बुहेहिं कायव्वा ॥ १६६ ॥ बहुमाणोऽवि हु एवं जायइ परमपयसाहगो णियमा । सारथुइथोत्तसहिया तह य चितिवंदणाओ य ।। १६७ ।। सारा पुण थुइथोत्ता गंभीरपयत्थविरइया जे उ । सन्भूयगुणुकित्तणरूवा खलु ते जिणाणं तु ॥ १६८ ॥ तेसिं अत्थाहिगमे णियमेणं होइ कुसलपरिणामो ।
॥१०॥
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