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पश्चाशक
॥४०॥
PRECARE
कारणमविहिंमि अइयारो ॥ ६४३ ॥ एयं णाऊणं जो सव्वं चिय सुत्तमाणतो कुणति | काउं संजमकायं सो भवविरहं लहुं लहतिलाशीलाग ॥ ६५४ ॥ पिंडविधी समत्ता॥
कापंचाशकं. ॥अथ चतुर्दशं शीलांग पञ्चाशकं ॥ १४ ॥ नमिऊण वद्धमाणं सीलंगाई समासओ वोच्छ । समणाण सुविहियाणं गुरूवएसाणुसारेणं ॥ ६४५ ॥ सीलंगाण सहस्सा अट्टारस एत्थ होंति णियमेणं । भावेणं समणाणं अखंडचारित्तजुत्ताणं ॥ ६४६ ।। जोए करणे सण्णा इंदियभूमादिसमणधम्मे य । सीलंगसहस्साणं अट्ठारसगस्स णिप्फत्ती ।। ६४७ ॥ करणादि तिणि जोगा मणमादीणि उ हवंति करणाई । आहारादी सण्णा चउ सण्णा इंदिया पंच।। ६४८ ॥ भोमादी णव जीवा अजीवकाओ य समणधम्मो उ । खतादि दसपगारो एव ठिए भावणा एसा ॥ ६४९ ॥ ण करेति मणेणाहारसण्णा विप्पजढगो उणियमेण । सोइंदियसंवुडो पुढविकायआरंभ खतिजुओ।। ६५० ।। इय मद्दवादिजोगा पुढविक्काएभवंति दस भेया। आउक्कायादीसुवि इय एते पिंडियं तु सयं ॥६५१॥ सोइंदिएण एयं सेसेहिवि जे इमंतओ पंच। आहारसण्णजोगा| एत्थ इय सेसाहिं सहस्सदुर्ग।। ६५२।। एयं मणेण वइमादिएसु एयं ति छस्सहस्साई। ण करइ सेसेहिपि य एए सव्वेवि अठारा॥६५३ ।। इमं विष्णेयं अइदंपज्जं तु बुद्धिमंतेहिं । एकपि सुपरिसुद्धं सीलंग सेससम्भावे ॥ ६५४ ॥ एक्को वायपएसोऽसंखेयपएससंगओजह तु ।।
॥४०॥ एतंपि तहाणे सतत्तचाओ इहरहा उ ॥ ६५५ ॥ जम्हा समग्गमयंपि सव्वसावज्जाजोगविरई उ। तनेणेगसरूवं ण खंडरूवत्तणमुवेई ॥ ६५६ ॥ एयं च एत्थ एवं विरतीभावं पइच्च दडव्वं । न उ बझंपि पवित्ति जसा भावं विणावि भवे ॥ ६५७ ॥ जह
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