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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कमप्रकृती सत्ताकरणं Ress मभासियं दुविहं ॥ ४४४ ।। संपुनगुणियकम्मो पएसउक्कस्ससंतसामी उ । तस्सेव उ उप्पिविणिग्गयस्स कासिंचि वन्नेहिं ॥४४५॥ II मिच्छत्ते मीसम्मि य संपक्खित्तम्मि मीससद्धाण । बरिसवरस्स उ ईसाणगस्स चरमम्मि समयम्मि ॥ ४४६ ॥ ईसाणे पूरित्ता ॥२८॥ नपुंसगं तो असंखवासासु । पल्लासंखियभागेण पूरिए इत्थिवेयस्स ।। ४४७ ।। पुरिसस्स पुरिससंकमपएसउक्कस्स सामिगस्सेव । इत्थी जं पुण समयं संपक्खित्ता हवइ ताहे ॥ ४४८॥ तस्सेब उ संजलणा पुरिसाइकमेण सव्वसंछोभे । चउरुवसमित्तु खिप्प रागते सायउच्चजसा ॥४४९ ॥ देवनिरयाउगाण जोगुक्कस्सेहिं जेट्टगद्धाए । बद्धवाणि ताव जावं पढमे समए उदिनाणि ॥ ४५० ।। सेसाउगाणि नियगेसु चेव आगम्म पुव्वकोडीए । सायबहुलस्स अचिरा बंधते जाव नोवट्टे ॥ ४५१ ॥ पूरित्तु पुब्बकोडीपुहुत्त | नारगदुगस्स बंधते । एवं पल्लतिगंते वेउव्विय सेसनवगम्मि ।। ४५२ ॥ तमतमगो सबलहुं सम्मत्तं लभिय सवचिरमद्धं । पूरित्ता मणुयदुगं सवज्जरिसहं सबंधते ॥ ४५३ ॥ सम्मद्दिटि धुवाणं बत्तीसुदहीसयं चउक्खुत्तो । उवसामइत्तु मोहं खतगे नियगबंधते ॥ ४५४ ।। धुवबन्धीण सुभाणं सुभत्थिराणं च नवरि सिग्धयरं । तित्थगराहारगतणू तेत्तीसुदही विरचिया य ।। ४५५ ॥ तुल्ला | नपुंसवेएणेगिंदिय थावरायवुज्जोवा । विगलसुहुमत्तियाविय नरतिरियचिरजिया होति ॥ ४५६ ॥ खवियंसम्मि पगयं जहन्नगे नियगसंतकम्मते । खणसंजोइयसंजोयणाण चिरसम्मकालंते ॥ ४५७ ॥ उबलमाणोण उब्बलणा एगट्टिई दुसामइगा । दिट्ठिदुगे बत्तीसे उदहिसए पालिए पच्छा ।। ४५८ ॥ अंतिमलोभजसाणं मोहं अणुवसमइत्तु खीणाणं । नेयं अहापवत्तकरणस्स चरमम्मि समयम्मि ॥ ४५९ ।। वेउविकारसगं खणबंध गते उ नरय जिट्टट्टिई । उन्चट्टित्तु अबंधिय एगेंदिगए चिरुव्वलणे ॥ ४६० ॥ | मणुयदुगुच्चागोए सुहुमखणबद्धगेसु सुहुमतसे । तित्थयराहारतणू अप्पद्धा बंधिया सुचिरं ।। ४६१ ।। चरमावलियपविट्ठा गुणसेढी ARRRRRRR ॥२८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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