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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्ताकरणं कर्मप्रकृतौ जासिमत्थि न य उदओ। आवलिगासमयसमा तासिं खलु फहगाई तु॥४६२।। संजलणतिगे चेव अहिगाणि य आलिगाए समएहिं।। ॥२८२॥ दुसमयहीणेहिं गुणाणि जोगट्ठाणाणि कसिणाणि ॥ ४६३ ॥ वेएसु फड्डगदुर्ग अहिगा पुरिसस्स चे उ आवलिया । दुसमयहीणा | गुणिया जोगट्ठाणेहिं कसिणेहिं ॥ ४६४ ॥ सवजहन्नाढतं खंधुत्तरओ निरंतरं उप्पि । एग उव्वलमाणी लोभजसा नोकसायाणं ॥ ४६५ ॥ ठिइखंडगविच्छेया खीणकसायस्स सेसकालसमा । एगहिया घाईण निदापयलाण हिच्चेकं ॥ ४६६ ॥ सेलेसिसंतिगाणं उदयवईणं तु तेण कालेणं । तुल्ला गहियाई सेसाणं एगऊणाई ॥ ४६७ ॥ संभवतो ठाणाई कम्मपएसेहिं होति नेयाई । करणेसु य उदयम्मि य अणुमाणेणेवमेएणं ॥ ४६८ ॥ करणोदयसंताणं पगइट्ठाणेसु सेसयतिगे य । भूयकारऽप्पयरो अवडिओ तह अवत्तव्यो ॥ ४६९ ॥ एगादहिगे पढमो एगाई ऊणगम्मि बिइओ उ । तत्तियमेत्तो तइओ पढमे समये अवत्तव्यो । ४७० ॥ करणोदयसंताणं सामित्तोघेहिं सेसग नेयं । गइयाइमग्गणासुं संभवओ सुठु आगमिय ॥ ४७१ ॥ बंधोदीरणसंकमसंतुदयाणं जहन्नगाईहिं । संवेहो, पगइ ठिई अणुभागपएसओ नेओ ॥ ४७२॥ करणोदयसंतविऊ तन्निजरकरणसंजमुजोगा । कम्मट्ठगुदयनिट्ठाजणियमणिटुं सुहमु४ति ॥ ४७३ ॥ इय कम्मप्पगडीओ जहासुयं नीयमप्पमइणावि । सोहियणाभोगकयं कहंतु वरदिद्विवायन्नू ॥४७४|| जस्स वर-12 सासणावयवफारसपविकसियविमलमइकिरणा । विमलंति कम्ममइले सो मे सरणं महावीरो ॥ ४७५ ॥ ॥ इति श्रीमच्छिवशर्मसूरीश्वरप्रणीता कर्मप्रकृतिः ॥ CONOUREGARNE ॥२८२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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