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फलं भणियं इय आणाकारिणो उ सङ्कस्स । चित्तं सुहाणुबंध णिव्वाणतं जिणिंदेहि ॥ ३३८ ॥ जिणबिंबपइट्टावणभावज्जियकम्म-8 अष्टम पश्चाशक
18 प्रतिष्ठा मूलम्. । परिणतिवसणं । सुगती पइट्ठावणमणहं सदि अप्पणो चेव ।। ३३९ ।। तत्थवि य साहुदंसणभावज्जियकम्मतो उ गुणरागी ।
मापश्चाशकम् काले य साहुदंसणमहकमेणं गुणकरं तु ॥ ३४० ॥ पडिबुझिस्संतन्ने भावज्जियकम्मओ य पडिबत्ती । भावचरणस्स जायति एगंत॥ २१ ॥ सुहावहा णियमा ॥ ३४१ ॥ अपरिवडियमुहींचताभावज्जियकम्मपरिणतीए उ। गच्छति इमीइ अंतं ततो य आराहणं लहइ
॥ ३४२ ॥ णिच्छयणया जमेसा चरणपडिवत्तिसमयतो पभिति । आमरणतमजस्सं संजमपरिपालणं विहिणा ॥ ३४३ ॥ आराहगा य जीवो सत्तट्ठभवेहिं पावती णियमा । जमादिदोसविरहा सासयसोकावं तु णिबाण ॥ ३४४ ॥ जिणभवणकारणविही समना ॥७॥
॥ अथाष्टमपंचाशकम् ॥ ८॥ नमिऊण देवदेवं वीरं सम्म समासओ बोच्छं । जिणाबपइट्ठाए विहिमागमलोयणीतीए ॥ ३४५ ॥ जिणबिंबस्स पइट्ठा पायं | कारावियस्स जं तेण । तकारवणंमि विहिं पढम चिय दणिमो ताव ॥ ३४६ ॥ सोउं णाऊण गुणे जिणाण जायाएँ सुद्धबुद्धीए । किच्चमिणं मणुयाणं जम्मफलं एत्तिय चेव (ह) ॥ ३४७ ।। गुणपगरिसा जिणा खलु तेसि बिंबस्स दंसणंपि सुहं । कारावणेण तस्स उ अणुरग हो अत्तणो परमो ॥ ३४८ ॥ मोक्खपहसामियाणं मोक्खत्थं उज्जएण कुसलेणं । तग्गुणबहुमाणादिसु जइयव्वं सबजत्तेणं ॥ ३४९ ॥ तग्गुणबहुमाणाओ तह सुहभावण बज्झती णियमा । कम्मं सुहाणुबंधं तस्सुदया सबसिद्धित्ति ॥३५०।। चतुर्भिः कलापकम् ।। इय सुद्धबुद्धिजोगा काले संपूडऊण कत्तारं । विभवोचियमपेज्जा मोल्लं अणहस्स मुहभावो ।। ३५१ ।। तारिसयस्सा- ॥ २१ ॥
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