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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit धर्मय चिंताए होइ विसउत्ति । दीसह य तं तउच्चिय णिरस्थिगा तेण एसति ॥ २५८ ।। उप्पन्नं चिय भावो इदमेव कहति जुञ्जती | अनित्य संग्रहणी चिंता ? | तब्बाधियं ण सिद्धं तुह सामण्णादि दिट्ठ ता ॥ २५९ ॥ ता इय जातिवियप्पा उज्झयवाऽणुभूयमाणम्मि । सज्जम्मिलपक्ष खण्डनं | हेउफलभावमोहठाणाय ते किंच ॥ २६०॥ कि तस्सत्तामतं किंतक्विरिय व किंव तदभावं । आसज्ज होति कज्ज? ण संगर्य। सव्वपक्खसु ॥ २६१ ॥ जइ तस्मत्तामत्तं आसज्ज हवेज्ज णणु तदद्धाए । उवार ण तम्स तत्ता ज णावेक्खा ततो जुत्ता ।। २६२॥3॥ Mतकालम्मि य भाव सइ कह तस्सेगकालभावित्ता । हेउफलभावभावो? भावे य अतिप्पमंगो उ॥ २६३ ।। तकिरिया चुप्पति मोत्तु | तस्सेब पत्थि अप्णा तु । एत्थमभावाम्म य पुब्यवणिया चव दोसा उ ।। २६४ ॥ जत्तो च्चिय तस्सत्तामे अत एवऽनंतरद्धाए । होइ तदद्धाए पुण तब्भावे कह णु तदवेक्खा ॥ २६५ ॥ कतगत्तमेत्तसत्ताणुबधि अणिच्चत्तणं ण एवं तु । तदभेदातात्ति मती भेदे अब्भुवगमो दुट्टो ॥ २६६ ॥ अह तस्मेस सहावो अणंतरखणम्मि होइ जे कज्ज । इयरस्सवि एसोच्चिय एतंपि न जुत्तिपडि बद्धं ॥ २६७ ।। जं तक्खणभवणम्मिवि णिबंधणं तस्स तस्सहावो तु । तदभावम्मि य भाव अतिप्पसंगो बला होति ॥ २६८ ।। ना बितियक्खणे य कज्जं ण य सो तम्मि खणिगत्ततो सिद्धं । ता कह ण तस्स भावो? भावेवितरस्स खणभंगा ॥ २६९।। अज्जायस्सियरस्सवि एस सहावोनि दुग्घडं जाए । किं तेण ? सो चिय तओ सोवि असिद्धो तु भणियामिणं ॥ २७० ॥ वेसिहॅपि न जुज्जति खणिगत्ते कारणस्स सहजाणं । णो इच्छिज्जइ जम्हा विसेसकरण (णो) कहंचिदवि ॥ २७१॥8॥ ७५ ॥ भिनद्धाणमुवादाणकारणस्साविसेसभावम्मि । कत्तो फले विसेसो, ण य सो तस्सावि इय जुत्तो ।। २७२ ॥ अह सोऽणादी ण घडई एवं चिय समहा अणादोवि । जुगवेतरभावितं विणा ण जमणादिपक्खोऽवि ।। २७३ ।। अह तस्स सहेऊते। एम सहावात्ति For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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