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धर्म | अह उ तदनं किं तस्स आगय? तेण तादवत्थातो । दीसेज्ज तओ कुज्जा कज्जंतरमो य जह पुरिव ॥ ४०४ ॥ आवर- क्षणिकवाद संग्रहणी- पि न जुज्जइ तप्पभवं तस्स तादवत्थातो । अन्नह तओ उ णासो एत्थ य पुब्बोदिओ दोसो ॥ ४०५ ।। ततियम्मि पज्जुदासे हंत
निरास: वियप्पम्मि अविगला दोसा । एतच्चिय विनेया भावंतरओ उ तस्सावि ।। ४०६॥ तदभावमह करेती तदभा ( तम्मा ) वं हंत
एव ण करेइ । भावं च अकुव्बंतो कहं स हेतुत्ति ? चिन्तमिदं ॥ ४०७ ॥' चरमम्मिवि कह हेऊ? न किंचि कुव्वंति जे विणासस्स । 31 भावे य सदाभावा एसि खणभंगसिद्धित्ति ।। ४०८॥ अन्नं च नस्सरो वा सहावतो होज्ज अणस्सरो वावि'। भावो णस्सरपक्खे नासे किं हेतुणा तस्स' ॥ ४०९ । नो अन्नमिह स भावो भावे भावस्सऽवेक्खए हेउं । काठिन्नादी पुढवादिणं च तद्धेतुओ चेव
॥ ४१० ॥ अतदुब्भवत्तणम्मि य पावइ तस्स णणु निस्सहावत्तं । अह णस्सरोत्ति एवंपि नासहेऊ विधा तस्स ॥४११ ॥ नहि ४ा भावाउ सहावो तीरइ अनेण अन्नहा काउं । गयणस्सव मुत्तत्तं नय दुसहावो विरोधातो ॥ ४१२ ।। किंच सहेउगपक्खे कज्जस्स व
तस्स पावती नासो । तण्णासम्मि य भावो पुम्वविणट्ठस्स भावस्स ॥ ४१३ ।। नय सो हवेज नियमा कयगाणवि कारणंतरावेक्खो। | वत्थस्स जहा रागो कयगोवि ततो न नासेज्जा ॥ ४१४ ॥ कोवि कदाई भावो कारणविरहातो तस्स भावेवि । नहि कारणाई निय| मेण होति जं कज्जवंताई ॥ ४१५ ॥ ता भावहेतवो च्चिय कुणंति पयईऍ नस्सरे भावे । उप्पत्तणंतरं चिय तेवि विणस्संति तो खणिगा
|| ४१६ ।। निरहेउगो विणासो अहव सहेऊ निरस्थिगा चित्ता (चिंता)।नहि एत्थऽणवत्थाणं परिणामे सव्वहा अस्थि ॥ ४१७॥ माजं तं चिय परिणमए पतिसमयं चित्तकारणं पप्प । दलविरहातो अन्नह जुज्जइन फलं तु भणियमिणं ॥ ४१८ ।। अह तं पुच्चं रूवं | Pu४॥ दचइऊण तहा हवेज्ज नियमेण । तदभावे तदभावो अतादवत्थं चनिच्चत्तं ॥ ४१९ ॥ नियमेण तस्स चातो कहंचि ननु (तु) सब्बज्झे
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