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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit धर्म | अह उ तदनं किं तस्स आगय? तेण तादवत्थातो । दीसेज्ज तओ कुज्जा कज्जंतरमो य जह पुरिव ॥ ४०४ ॥ आवर- क्षणिकवाद संग्रहणी- पि न जुज्जइ तप्पभवं तस्स तादवत्थातो । अन्नह तओ उ णासो एत्थ य पुब्बोदिओ दोसो ॥ ४०५ ।। ततियम्मि पज्जुदासे हंत निरास: वियप्पम्मि अविगला दोसा । एतच्चिय विनेया भावंतरओ उ तस्सावि ।। ४०६॥ तदभावमह करेती तदभा ( तम्मा ) वं हंत एव ण करेइ । भावं च अकुव्बंतो कहं स हेतुत्ति ? चिन्तमिदं ॥ ४०७ ॥' चरमम्मिवि कह हेऊ? न किंचि कुव्वंति जे विणासस्स । 31 भावे य सदाभावा एसि खणभंगसिद्धित्ति ।। ४०८॥ अन्नं च नस्सरो वा सहावतो होज्ज अणस्सरो वावि'। भावो णस्सरपक्खे नासे किं हेतुणा तस्स' ॥ ४०९ । नो अन्नमिह स भावो भावे भावस्सऽवेक्खए हेउं । काठिन्नादी पुढवादिणं च तद्धेतुओ चेव ॥ ४१० ॥ अतदुब्भवत्तणम्मि य पावइ तस्स णणु निस्सहावत्तं । अह णस्सरोत्ति एवंपि नासहेऊ विधा तस्स ॥४११ ॥ नहि ४ा भावाउ सहावो तीरइ अनेण अन्नहा काउं । गयणस्सव मुत्तत्तं नय दुसहावो विरोधातो ॥ ४१२ ।। किंच सहेउगपक्खे कज्जस्स व तस्स पावती नासो । तण्णासम्मि य भावो पुम्वविणट्ठस्स भावस्स ॥ ४१३ ।। नय सो हवेज नियमा कयगाणवि कारणंतरावेक्खो। | वत्थस्स जहा रागो कयगोवि ततो न नासेज्जा ॥ ४१४ ॥ कोवि कदाई भावो कारणविरहातो तस्स भावेवि । नहि कारणाई निय| मेण होति जं कज्जवंताई ॥ ४१५ ॥ ता भावहेतवो च्चिय कुणंति पयईऍ नस्सरे भावे । उप्पत्तणंतरं चिय तेवि विणस्संति तो खणिगा || ४१६ ।। निरहेउगो विणासो अहव सहेऊ निरस्थिगा चित्ता (चिंता)।नहि एत्थऽणवत्थाणं परिणामे सव्वहा अस्थि ॥ ४१७॥ माजं तं चिय परिणमए पतिसमयं चित्तकारणं पप्प । दलविरहातो अन्नह जुज्जइन फलं तु भणियमिणं ॥ ४१८ ।। अह तं पुच्चं रूवं | Pu४॥ दचइऊण तहा हवेज्ज नियमेण । तदभावे तदभावो अतादवत्थं चनिच्चत्तं ॥ ४१९ ॥ नियमेण तस्स चातो कहंचि ननु (तु) सब्बज्झे For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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