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संग्रहणी
म्मि नाणगब्वेण । कुणइ विवादं कलुसियचित्तो तत्तो य से बंधो ॥ ५०० ॥ सोवि मिहो भिन्नं नाणं इह नाणिणो जओ ति । अज्ञानवाद
तीरइ न तओ काउं विणिच्छओ एयमेवन्ति ॥ ५०१ ।। तचिसयदरिसणातो जुज्जइ एसो ण तं च पारोक्खे । संवेदणमेतण तु निरासः 8/पडिपक्खनिसेहणमजुत्तं ॥ ५०२ ॥ जं सव्वण्णुवदेसा जायइ अह तंमयं सुविभाणं । तन्भावे किं माणं बडुएसु य एस एवत्ति ?
॥ ५०३ ।। देवागमादियं चैव वितेसालिंगं ण एत्यति पमाणं । साहारमं च संपिा भावम्मिवि तदुवदेमम्मि ।। ५०४॥ णातेवि तदुवदेसे एसेवत्थो मउत्ति से कह णु । नज्जइ चित्तत्था खलु जं सदा समइयाणेगे ॥ ५०५ ॥ अह तत्तो सवणाओ आयरियपरं|परा इदाणिपि । सवणेऽवि तचिवक्खा गहि छउमत्थस्स पच्चक्खा ॥ ५०६ ।। तदभावम्मि य नज्जइ कहमिदमेसो इम्मस्सऽभिप्पातो? । तस्साणुवादकरणे मिलक्षणातं फुडं चेव ॥ ५०७ ।। मिलक्खू अमिलकूखुस्स, जहा वुत्ताणुभासए । ण हेउं से वियाणेइ, | भासियं तऽणुभासइ ।। ५०८ ।। एवमाणिया णाणं, वदंतावि सयं सयं । निच्छयत्थं न याणंति, मिलक्खुव्व अबोधिए ॥ ५०९ ॥
जं चाकज्जायरणे यवत्तमाणस्स जायई तिव्यो । परिणामो नाणिस्सा तत्तो बंधोऽवि तिव्वोत्ति ।। ५१० ॥ नाणीवि कुणाइ पावं | नूणं ता एयमेव सेयंति । लोगस्स विपरिणामं जणयंतो बंधई कम्मं ॥५११॥ तम्हा परलोगसमुज्जयस्स भिक्खुस्स असढभावस्स ।
चरणावधायगेणं नाणेण अलमसंगस्स ॥ ५१२ ।। नाणनिसेहणहेतू नाणं इतरं च (व) होज? जइ नाणं । अब्भुवगमम्मि तस्सा | कहन्नु अन्नाणमो सेय? ॥ ५१३ ॥ अह अनाणं ण तयं णाणनिसेहणसमत्थमेवंपि । अप्पडिसेहातो च्चिय संसिद्ध नाणमेवत्ति | ॥ ५१४ ॥ वादेवि कलुसभावो बंधनिमित्तमिह ण पुण णाणंति । अनाणावगमेणं तं पुण कम्मक्खयानिमित्तं ॥ ५१५ ॥ वादोवि ॥९ ॥ | वादिनरवइपरिच्छगजणेसु निउणबुद्धीसु । मज्झत्थेसु य विहिणा उस्सग्गेणं अणुनाओ ॥ ५१६॥ सव्वेवि मिहो भिन्नं नाणं जइवि
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९.॥
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