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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४/ तओ कहं भोचा ? । सो चेव तहापरिणतिरहियस्स ण संगतो जेण ।। ५८३ ॥ जच्चिय विवागवेदणरूवा तप्परिणई हवति चित्ता । ठा 18 जीवस्य संग्रहणीट सच्चिय भोयणकिरिया नायब्वा होइ जीवस्स ।। ५८४ ॥ न य तं तओ अणणं तस्सोदासीणभावओ चेव । चलणाइ कुणइ जम्हाला वेदणकिरिया तओ सिद्धा ॥ ५८५ ॥ बझसहकारिकारणसावेक्खा सा य पायसो जेणं । ता अंगणादिजोगे भोगपसिद्धी इहं लोगेश भोक्तृता ॥ ९५॥ ॥ ५८६ ।। एतेणञ्चेतणं जं कम्मं तं णियमित कहं फलति । ता पेरगो पहू किल परिहरियमिदंपि दट्टव् ॥ ५८७ ॥ कत्ता हु चे--3 तणो जे हंदि ह ता पेरगोवि सो जुत्तो । इहरा य दिहाणी अदिद्रपरिगप्पणा चेव ।। ५८८ ॥ कम्मपरतंतओ चेव पेरणसामत्थवि | रहिओ एस । कम्मरहिओ य इसो ता सो च्चिय पेरगो जुत्तो॥ ५८९ ॥ परेइ तओ किं फलमुहिस्स तयं ? न किंचि जइ एवं । फलरहियपवत्तीओ नालोच्चि( चि )यकारिता तस्स ।। ५९० ॥ अह फलमुद्दिस्स तयं धम्मादीणं हवेज्ज अन्नतरं । तस्सावेक्खत्त ओ जइवणिकामी व अकयत्थो ॥ ५९१ ।। सिय तस्सेस सहावो फलनिरवेक्खोवि पेरणं कुणति । ण तु एसो मुत्तत्ता चिट्ठइ एमेव | किं माणं? ॥ ५९२।। कम्मपरतंतओ जं पेरणसामत्थविरहितो कत्ता । एयपमिद्धं तस्सवि दि8 जं करणसामत्थं ॥ ५९३ ॥ कत्ताद्रवि अह पभु च्चिय विचित्तकरणम्मि रागमादीया । पेरगपगप्पणाएवि पुव्वुत्ता चेव दोसा उ ॥ ५९४ ॥ पेरेति हिए एकं अन्न * इतरम्मि किं इमं जुत्तं ? : अह तकम्मकयमिणं तंपि य णणु तक्थं चेव ।। ५९५ ॥ इयरस्स उ कत्तित्ते सिद्ध सामत्थसत्तिसिद्धीओ । 8 पहुकप्पणा अविसया भत्तीए नत्थि वाऽविसयो ॥ ५९६ ॥ लोमेऽवि एस भोत्ता सिद्धो पायं तहागमेसुं च अविगाणपवित्तीओ णय 21 14॥९५५ दएतेसिं अपामन्नं ॥ ५९७ ॥ इहरा कयवफल्लं तब्भावे हंदि दिट्टबाधा तु । वाणियकिसीबलादी दिट्ठा जं सकयभाइत्ति ॥ ५९८ ॥ 1 दंडिगगहमरणादौ ण सगडभोइत्तणं अणेगंतो । आयामेणुवभोगा एगन्तो चेव नायव्यो ॥५९९ ।। पुब्धि जमुवत्तं खलु कम्मं तं सग-1 For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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