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धर्म
INण एग अवि समाणतणंति ण य एतं । एगताऽभेदम्मिवि जुज्जइ पच्चक्खसंसिद्धं ॥ ४३७ ॥ तम्हा तग्गहणाओ ततो पवित्तीओक्षणिकवाद संग्रहणी. कोगसिद्धीओ । सवियप्पं पच्चक्खं सिद्धति कयं पसंगेण ॥ ४३८ ॥ तह भावहेतवो चिय कुणंति पयईएँ णस्सरे भावे । जे भणिय | निरासः
तदजुत्तं अगदोसप्पसंगाओ ॥ ४३९ ॥ इय भावहेतवो चिय तन्नासस्सावि हेतवो नियमा । एवं च उभयभावो पावइ एगम्मिश्री
समयम्मि ॥ ४४०॥ तब्भावम्मि य भावो इतरस्स न जुज्जती उ भावे य । तेणाविरोधतो पुण पावह निच्चपि तब्भावो ॥ ४४१॥ का अह उ खणहितिधम्मा भावो नासो न जुत्तमेयंपि । निरहेउगो स इडो एसो य जओ सहेउत्ति ॥ ४४२॥ अह मोत्तण सहेउं अनं GIनावेक्खइत्ति णिरहेऊ। तुल्लमिणं इतरम्मिवि अस्थविसेसेवि धणिमेत्तं ॥ ४४३॥ अह तं पड़ हेउस्सा अहेउगत्तं पसाहियं पून्धि ।
येहि वियप्पेहिं जातिवियप्पा हु ते णेया ॥ ४४४ ॥ जम्हा अणुहवसिद्धे तस्सुप्पाएवि एवजातीया । संति वियप्पा तेसि भावेऽवि 181 य तस्स णाभावो ॥४४५॥ उप्पत्तिसहावं वाणुप्पत्तिसहावगं व तदेऊ। कज्जा भावं उभयाणभयसहावं व इति भेदा ॥४४६॥13 दाजइ उपत्तिसहावं अफलो तस्सेव तस्सभावत्ता । हेतू तदवेक्खंमि य तम्मि विणासवि किमजुत्तं ? ॥ ४४७ ॥ Vा तस्सवेस सहावो पतिणिययं चेव अणुवगारिपि । हेउं पप्प विणस्सह भावोत्ति सहेउगो तो सो ॥ ४४८ ॥णय भावहेतवोऽवि
४ कुणंति भावस्स किंचि तुह पक्खे । जे तस्सत्तामेत्तं पडुच्च भणितो तदुप्पातो ॥ ४४९ ॥ ॥ अहऽणुप्पत्तिसहावं कुज्जा एवं नु खर-४ ॥८६॥ विसाणपि । अह सो न तस्स हेऊ इतरस्स उ केण हेउत्ति ? ॥४५०॥ जमणुप्पत्तिसहावा खरसिंगघडादओऽविसेसेण । ता एगस्सा
हेऊ सेसाणवि, मेयसिद्धी वा ॥ ४५१ ॥ तस्सस्थि इहं हेऊ तत्थो उप्पज्जते य ता कह णु । एसोऽणुप्पत्तिसहावगोत्ति पन्ना |Pne६॥ | ववइसति ॥ ४५२ ॥ उभयसहावत्तम्मि उ विरोहदोसोऽणिवारियप्पसरो । इतरम्मिवि उप्पातो अभावतो चेव नो जुत्तो ॥ ४५३ ॥[*
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