SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit ता इहं कत्ता । एवं धम्मियणायं विनयं वयणमत्तं तु ॥ १४५ ॥ जाईसरणं च इहं दीसइ केसिंचि अवितह लोए । पुव्वभवठवियसे- परलोयसंग्रहणी 11 वियसंवादातो अणेगभवं ॥ १४५ ॥ अह तम्मि किं पमाण ' णणु सो चिय अप्पतारगे किंति ? । बालस्सवि भावातो संवादो गामिता. दभावतो तस्स ।। १४७ ॥ अह उ जहिच्छाहेतू सो संवादोत्ति किं न इतरोवि । ण य जातिस्सरवयणे इहं पसिद्धो विसंवादो ॥ १४८ ॥ अह अम्हेहिं ण दिट्ठो कोई जाइस्सरोत्ति तो णस्थि । एवं पपियामहस्सवि अच्चतं पावइ अभावो ॥ १४९ ॥ तदभाव-12 18| म्मि अभावो पितामहस्सावि तहय पितुणोऽवि । तदभावे भवतोऽवि य पडिसहोऽसंगतो तम्हा ।। १५० ।। अह कज्जातो भावोठा पितामहादीणमेवमेवहं । किं जाइस्सरकजण पसिद्धं देवकुलमादी ? ॥ १५१ ।। बालकताणुस्सरणं तिब्बखओवसमभावजुत्तस्स । Pजह कस्सइ वुड्डस्सवि जाइस्सरणं तहा कि ण ? ॥ १५२ ।। इय संभवाणुमाणा सिद्धमिण जं च भूतवतिरित्तं । साहियमिह चेयण्ण | भूयसभावति तोऽजुत्तं ।। १५३ ॥ जो बालथणभिलासो पढमो अहिलासपुबगो सोऽवि । अहिलासत्ता जूणो जह विलयाहार अहिलासो ॥ १५४ ॥ विलयाहारभिलासो इह अणुभूयाभिलासपुव्वो तु । सोऽवि सिया एवं चिय णो पढमत्तप्पकोवाओ ॥१५५|| | सोवि ण एगतेणं इहष्णुभूयाभिलासपुब्बो तु । जमणादा संसारे तं णत्थि जतं ण अणुभूतं ।। १५६ ॥ इय पढम विनाणं द्रविन्माणतरसमुन्भर्व णेयं । विनाणत्तातो च्चिय जुवविन्नाणं व बालस्स ।। १५७ ॥ चित्तो कम्मसहावो भणिओ तत्तो य लाभहर-x Mणादी। सिद्धत्ति अस्थि जीवो तम्हा परलोगगामी तु ॥ १५८ ॥ ___ जम्हा ण कित्तिमा सो तम्हाणादीत्थ कित्तिमत्ते य (उ)। वत्तव्वं जेण कतो सो किं जीवो अजीवोत्ति ? ॥१५९ ।। जइ जीवो जेण कतो सो अन्नणंति एवमणवत्था । चरमो अकित्तिमो अह सव्वसु तु मच्छरो को णु ? ॥१६०॥ जो सो अकित्तिमो CON For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy