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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदेषु. "का जनाना ॥१९८॥ RESTEREOREKH गोणत्तं विदाणा गोमीलणमनपासणऽण्णाए । कहण मणुओ तीए कह पुण मूलाएँ सा कत्थ ॥९०५।। णग्गोहतले सवणं णियत्तणा|चारिसंजी| चिंत सव्वचरणंति । पत्ता मणुओ एवं इह एसा धम्ममूलत्ति ॥ ९०६॥ ता ओहेणं इहयं उचियत्तणमविरोहओ जत्तो । कायव्यो |वनी बहु |जह भवगोणविगमओ जीवमणुयत्तं ॥ ९०७॥ तोसा सासणवण्णो पूजा भत्तीए बीजपक्खेवो । एवं णाणी बाहुल्लओ हियं चेव कुणइत्ति ।। ९०८ ॥ एयारिसओ लोओ खयण्णो हंदि धम्ममग्गम्मि । बुद्धिमया कायव्वो पमाणमिइ ण उण सेसोवि ॥ ९०९ ॥ लंबनं बहुजणपवित्तिमत्तं इच्छंतेहिं इहलोइओ चेव । धम्मो ण उज्झियव्यो जेण तहिं बहुजणपवित्ती ॥ ९१० ।। ता आणाणुगयं जं तं तैलपात्रधर चेव बुहेण सेवियव्वं तु । किमिह बहुणा जणेणं ? हंदि ण सेयत्थिणो बहुया ॥९११ ।। रयणस्थिणोऽतिथोवा तद्दायारोऽवि जह उ लोयम्मि । इय सुद्धधम्मरयणत्थिदायगा दढयरं णेया ॥ ९१२॥ बहुगुणविहवेण जओ एए लब्भंति ता कहमिमेसु । एयदरिदाणं | तह सुविणेऽवि पयट्टई चिंता ।। ९१३ ।। धण्णाइसु विगइच्छा वत्थहिरण्णाइएसु तह चेव । तञ्चिताए विमुक्का दुहावि रयणाण जोगत्ति ॥ ९१४ ।। जे पुण थेवत्तणओ एएसुं चेव अविगएच्छत्ति । ते एयाण अजोग्गा अइणिउणं चिंतियव्वमिणं ।। ९१५ ॥ अक्खुद्दाई धष्णाइया उ बत्थाइया उ विष्णेया । मज्झत्थाई इइ एकवीसगुणजोगओ विहवो ॥ ९१६ ॥ पायद्वगुणविहीणा एएसि मज्झिमा मुणेयव्वा । एत्ते परेण हीणा दरिद्दपाया मुणयुव्वा ॥९१७।। जह ठितिणिबंधणेसुं धम्म कम्पिति मूढगा लोया । तह एएवि |वरागा पायं एवंति ददृव्वा।।९१८। एएणं चिय कोई राया केणावि सूरिणा सम्म। णाएणमेयदिट्ठी थिरीकओ सुद्धधम्मम्मि।।९१९॥ | नवरं पवेसिऊणं सागेंधणवण्णमाइठाणाई । बहुगाई दंसिऊणं रयणावणदंसणेणं तु ।।१२०।। ण य दुक्करं तु अहिगारिणो इहं अहिगयं I ॥१९८॥ अणुट्ठाणं । भवदुक्खभया णाणी मोक्खत्थी किंच ण करेइ? ॥ ९२१ ।। भवदुक्खं जमणंतं मोक्खसुहं चेव भाविए तत्ते । गरुयंपि ASE For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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