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धर्म
संपत्ती य इमस्सा कम्मखयोवसमभावजोगातो । जह जायइ जीवस्सा बुच्छामि तहा समासेणं ।। ७५० ॥ वन्नियकम्मस्स कमस्थितिः मंगरणीत जया घंसणघोलणनिमित्ततो कहवि । खविता कोडाकोडी सब्वा एकं पमोचूणं ।। ७५१ ॥ तीयवि य थेवमेत खविए ताहिमंतरम्मि
सम्यक्त्व
लाभश्च जीवस्स । भवति हु अभिन्नपुवो गंठी एवं जिणा ३ति ॥ ७५२ ॥ गठित्ति सुदुम्भेदो कक्खडघणरूढगूढगंठिन्य । जीवस्स ॥१०५॥
18/ कम्मजणितो घणरागद्दोसपरिणामो।। ७५३ ।। भिन्नम्मि तम्मि लाभो जायइ परमपयहेतुणो नियमा। सम्मत्तस्स पुणो तं बंधण न4
| वोलइ कयाइ ॥ ७५४ ॥ तं जाविह संपत्ती ण जुज्जई तस्स निग्गुणत्तणओ। बहुतरबंधातो खलु सुत्तविरोधा जओ भणियं ।। ७५५॥ | पल्ले महइमहल्ले कुंभं पक्खिबइ सोधए नालिं । अस्संजए अविरए बहु बंधइ निज्जरे थोवं ।। ७५६ ॥ पल्ले महइमहल्ले कुंभ सोधेइ द पक्खिये नालिं। जे संजए पमत्ते बहु निज्जर बंधई थोवं ।। ७५७ ।। पल्ले महइमहल्ले कुंभं सोहेइ पक्खिव ण किंचि । जे संजय | अपमत्ते बहु निज्जर बंधति न किंचि ॥ ७५८ ।। एयमिह ओघविसयं भणिय सचे ण एवमेवत्ति । अस्संजतो उ एवं पडुच्च उस्सनभावं तु ।। ७५९ ।। पावइ बंधाभावो उ अन्नहा पोग्गलाणऽभावातो। इय बुद्रिगहणतो ते सब्वे जीनेहिं जुज्जन्ति ।। ७६०।। मक्खिाऽसंखेज्जातो कालाओ ते यजं जिएहिंतो। भणियाणंतगुणा खलु ण एस दोसो ततो जुतो ।। ७६१ ॥ गहणमर्णताण ण किं जायइ समएण? ता कहमदोसो।। आगमसंसाराओ ण तहाणताण गहणं तु ।। ७६२॥ आगममोक्खाओ किं? विसेसविसयत्तणेण सुत्तस्स । तं जाविह संपत्ती न घडइ तम्हा ण दोसो तु ।। ७६३ ।। सा किं सहावतो चिय उदाहु गुणसेवणाएँ इत्ति । B ॥१०५॥ | जइ ता सहावओ चिय उड्डेपि निरस्थिगा किरिया ।। ७६४ ॥ अह उ गुणसेवणाए, मिच्छादिहिस्स के गुणा पुधि। तन्धिबंधातो चे, सोवि तहा केग कम्जेण? ॥ ७६५ ।। परिणामविसेसातो, तस्सविय तहाविहस्प को हेऊ? | जइ ताव सहावोच्चिय,
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