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दशशास्त्रीय भुत्ते चेवं चिय दिवसम्मि न तेण किल भुत्तं ॥४६४॥ आराहण काल गओ सुरेमु वेमाणिएसु उववण्णो । एवं अभिग्गहो इह कल्ला-13 अनुबन्धे उपदेश पदे दाणणिबन्धणं णेओ ।। ४६५ ॥ जइ एवं रिसिघाएऽवि हंत आराहणा इमस्सेसा । कह खुड्डयाइयाणं दोसलवाणंतसंसारो? ।। ४६६ ॥ जीणश्रेष्टी
| भण्णइ अप्पडियारो दोसलवो तेसि ण पुण इयरस्स । कयपडियारो य इमो ण फलइ विसमेत्थमाहरणं ।। ४६७॥ मारइ विसलेसोऽ॥१७२।। वि हु अकयपडियारमो ण उ बहुंपि । कयपडियारं तं चिय सिद्धमिणं हंत लोएऽवि ॥ ४६८ ॥ मंतागयरयणाणं सम्म पोगो
यमुनावक्र: | विसम्मि पडियारो । आणेसणिज्जऽभिग्गहरूवा एते उ दोसविसे ॥ ४६९ ॥ एए पउंजिऊणं सम्मं निज्जरइ अइबहूयंपि । दोसविस
आज्ञा
प्राबल्यं | मप्पमत्तो साहू इयरोव्व बुद्धिजुओ ॥ ४७०॥ कम्मं जोगनिमित्तं बज्झइ बंधहिती कसायवसा। सुहजोयम्मी अकसायभावओऽबेइ | तं खिप्पं ॥ ४७१ ।। गरुओ य इहं भावो णेओ सहगारिगरुयभावेण । तित्थगराणा णियमा एत्थं सहगारिणी जेण ॥ ४७२ ॥ | दोसो उ कम्मजो च्चिय ता तुच्छो सो इमं तु अहिगिच्च । लेसोऽवि अग्गिणो डहइ हंदि पयरंपि हु तणाणं ॥४७३।। अणुकूलपवणजोगा णतु तविरहम्मि सिद्धमेयं तु । भावो उ इहं अग्गी आणा पवणो जहा भणिओ ॥ ४७४ ॥ सा पुण महाणुभावा तहविया पवणाइरूवमो भणिया । विवरीए साऽसमओदिया य तह बंधवुड्डिकरा ॥ ४७५ ॥ आलोचियबमेयं सम्मं सुद्धाएँ जोगिबुद्धीए । | इयरीए उण गम्मइ रूवं व सदंधसण्णाए ॥ ४७६ ।। जच्चंधो इह णेओ अभिण्णगंठी तहंधलयतुल्लो। मिच्छद्दिट्टी सज्जक्खओ
य सइ सम्मदिट्ठीओ।। ४७७ ॥ एसो मुणेइ आणं विसयं च जहाट्टयं णिओगेणं । एईए करणम्मि उ पडिबंधगभावओ भयणा ला।। ४७८ ॥ कयमेत्थ पसंगेण समासओ जेण एस आरंभो । दिसिमित्तदंसणफलो पगयं चिय संपयं वोच्छं ।। ४७९ ॥ अण्णंपि ॥१७२।।
इहाहरणं वणियसुया सज्झिला उ बोहीए । पव्वज्ज सीयल मणोरहो य सुद्धाएँ फलभेओ॥ ४८० ।। तगराए वसुसुया सेणसिद्ध
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