SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir उपदेश पदेषु गुप्ति ॥ १८४ ॥ कुणइ । पहुआणाए संपत्थियस्स कंडंपि लग्गंतं ।। ६६७ ।। जह चेव सदेसम्मी तह परदेसेवि हंदि धीराणं । सत्तं न चलइ समुव| त्थियम्मि कज्जम्मि पुरिसाणं ॥ ६६८ ॥ कालोऽवि य दुभिक्खाइलक्षणो ण खलु दाणसूराणं । भेदइ आसयरयणं अवि अहिंग- दृष्टान्ताः यरं विसोहेइ ॥ ६६९ ।। एवं चिय भव्वस्सवि चरित्तिणो णहि महाणुभावस्स । सुहसामायारिगओ भावो परियत्तइ भावस्या कयाइ ॥ ६७० ॥ भोयणरसण्णुणोऽणुवयस्स णोऽसाउभोइणोवि तहा । साउम्मि पक्खवाओ किरियाविण जायइ कयाइ ॥६७१।। परावृत्तिः | एवं सज्झायाइसु तेसिमजोगोवि कहवि चरणवओ। णो पक्खवायकिरिया उ अण्णहा संपयहिति ॥ ६७२ ॥ तम्हा उ दुस्समा गुरुकुल एवि चरित्तिणोऽसग्गहाइपरिहीणा । पण्णवणिज्जा सद्धा खताइजुया य विष्णेया ॥६७३।। णाणम्मि दंसणम्मि य सइ चरणं जं तओ वासः | ण एयम्मि । णियमा असग्गहाई हवंति भववद्धणा घोरा ॥६७४।। सज्झायाइसु जत्तो चरणविसुद्धत्थमेव एयाणं । सत्तीए संपयट्टा | ण उ लोइयवत्थुविसओ उ॥६७५।। तत्तो उ पइदिण चिय सण्णाणविवद्धणाएँ एएसि । कल्लाणपरंपरओ गुरुलाघवभावणाणाओ॥६७६।। | एयमिह अयाणता असग्गहा तुच्छबज्झजोगम्मि । णिरया पहाणजोगं चयंति गुरुकम्मदोसेणं ॥ ६७७ ॥ सुद्धंछाइसु जत्तो गुरुकु|लचागाइणेह विष्णेओ । सबरससरक्खपिच्छत्थघायपायाछिवण तुल्ला।।६७८॥णहि एयम्मिवि न गुणो अस्थि विहाणेण कीरमाणम्मि। तं पुण गुरुतरगुणभावसंगयं होइ सव्वत्थ ॥ ६७९ ॥ तित्थगराणा मूलं णियमा धम्मस्स तीऍ वाघाए। किं धम्मो? किमधम्मो ? | णवं मूढा वियारंति ॥६८०॥ आयारपढमसुत्ते सुर्यमि इच्चाइलक्खणे भणिओ। गुरुकुलवासो सक्खा अइणिउणं मूलगुणभूओ॥६८१॥ णाणस्स होइ भागी थिरतरतो दंतणे चरित्ते य । धण्णा आवकहाए गुरुकुलवास ण मुंचति ॥६८२।। ता तस्स परिचाया सुंदंछाई18॥ १८४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy